Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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___ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ ॐ एवं बारसकसायछण्णोकसायाणं ।
२०१. कुदो ? जहण्णाणुभागसंतकम्मं सव्वघादिदुढाणियं उक्कस्साणुभागसंतकम्म सबघादिचदुहाणियमिच्चेदेण एदासिमणुभागस्स मिच्छत्ताणुभागादो भेदाभावा । वारसकसायजहण्णाणुभागस्स सव्वघादित्तं होदु णाम, तेसिं जहण्णफ द्दयप्पहुडि जाव उक्कस्सफद्दयं ति सव्वघादित्तं मोत्तूण तेसु देसघादित्ताणुवलंभादो। किंतु छण्णोकसायफद्दयाणं सव्वयादित्तं | जुज्जदे ? सम्मत्तजहण्णफद्दयसमाणफद्दयाणुभागप्पहुडि उवरि दारुसमागफद्दयाणमणंतिमभागो ति णिरंतरं तत्थ देसघादिफद्दयाणं पि उवलंभादो त्ति ? ण एस दोसो, अणियट्टिक्ववएण घादिदावसिहछण्णोकसायचरिमफालीए चरिमफद्दयचरिमवग्गणेगपरमाणुणी धरिदाविभागपलिच्छेदाणं संगहिदासेसफद्दयभावेण दुहाणियत्तमुवगयाणमहियाविभागपलिच्छेदसंबंधेण सव्वघादित्तं सब निषेकोंकी नहीं होती कि तु अन्तिम निषेककी होती है फिर भी वह सब निषेकोकी स्थिति कही जाती है क्योंकि उसमें सब निषेकोंकी स्थिति गर्मित है, वैसे ही अन्तिमपटककी अन्तिम वर्गणाके एक परमाणुके अविभागीप्रतिच्छेद में शेष सब परमाणुओंके अविभागीप्रतिच्छेद गर्भित हैं, अतः वही अनुभागस्थान है और उसमें द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षा वर्ग-वर्गणा और सर्वक सभी बन जाते हैं। इसपर पुनः यह शङ्का हो सकती है कि जब अन्तिमस्पर्धककी अन्तिम वर्गणाके एक परमाणुम जो अनुभाग है उसीको अनुभागस्थान कहते हैं तो इसप्रकार पृथक पृथ. स्पर्धक रचना क्यों की जाती है ? इसका समाधन यह है कि इस एक परमाणुमं जो अनुभागस्पर्धक पाये जाते हैं उसीके अविभागी प्रतिच्छेदोंका कथन उक्तप्रकारसे किया जाता है। इसी कारणसे चूर्णिसूत्रमें आये उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मपदसे एक उत्कृष्टस्पर्धकका ही ग्रहण किया है। आगे भी जहाँ कहीं इसप्रकारका कथन आये वहाँ उसका यही अर्थ समझना चाहिये।
* इसीप्रकार बारह कषाय और छ नोकपायोंका अनुभागसत्कर्म है ।
२०१. क्योंकि उनका जघन्य अनुभामसत्कर्म सर्वघाती और द्विस्थानिक है तथा उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म सर्ववाती और चतुःस्थानिक है, इस दृष्टिसे उन अनुभागका मिथ्यात्वके अनुभागसे कोई भेद नहीं है।
शंका-बारह कषायोंका जघन्य अनुभाग सर्वघाती होओ, क्योंकि जघन्य पधेकसे लेकर उत्कृष्ट स्पर्धक पर्यन्त सर्वघातीपने सिवाय उनमें देशघातिपना नहीं पाया जाता है। किन्तु छह नोकषायों स्पर्धकोंका सर्वघातीपना नहीं बनता है, क्योंकि सम्यक्त्व जघन्य स्पर्धको समान स्पर्धकके अनुभागसे लेकर आगे दारुसमान स्पर्धकोंके अनन्तवें भाग पर्यन्त उनमें निरन्तर देशघाती स्पर्धक भी पाये जाते हैं।
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि नौवें गुणस्थानवती क्षपकके द्वारा घात किये जानेसे अवशिष्ट रहे छह नोकषायोंकी अन्तिम फालीमें अन्तिम स्पर्धककी अन्तिम वर्गणाके एक परमाणु के सम्बन्धसे जिनमें अविभागप्रतिच्छेद स्वीकार किये गये हैं, अशेष स्पर्धकरने का संग्रह होनेसे जो द्विस्थानिकरने का प्राप्त हैं और अधिक अविभागप्रतिच्छेदोंके सम्बन्धसे जो सर्वघाति
1. प्रा. प्रतौ चरिमफइप्रचरिमवग्गणेण परमाणुमा इति पाठः ।
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