Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ गवगेवजा त्ति अणंतगुणहाणी० ज० एगस०, उक्क० सत्त रादिदियाणि । अवहि० णत्थि अंतरं । अणुदिसादि जाव सव्वदृसिद्धि त्ति अणंतगुणहाणी० ज० एगस०, उक्क० वासपुधत्तं पलिदो० संखे०भागो। अवहि० णत्थि अंतरं । एवं जाणिदण णेदव्वं जाव अणाहारि ति।
एवमंतराणुगमो समत्तो। १८४. भाव० सव्वत्थ ओदइओ भावो ।
६ १८५. अप्पाबहुआणु० दुविहो णिद्दे सो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण सव्वत्थोवा मोह० अणंतभागहाणिविहत्तिया जीवा । असंखेज्जभागहाणि० जीवा असंखेगुणा । संखेज्जभागहाणि जीवा संखे०गुणा। संखे० गुणहाणि० जीवा संखे०गुणा । असंखे०गुणहाणि. जीवा असंखे०गुणा । अणंतभागवड्डि. जीवा असंखे० गुणा०। असंखे०भागवडि. जीवा असंखे०गुणा। संखे०भागवडि. जीवा संखेगुणा। संखेज्जगुणवडि. जीवा संखे०गुणा । असंखे-गुणवडि०जीवा असंखेगुणा । अणंतगुणहाणिवि० जीवा असंखे०गुणा। अणंतगुणवडिवि० जीवा असंखे०गुणा । अवहिदवि० प्रमाण है। अानतसे लेकर नवग्रैवेयक तकके देवों में अनन्तगुणहानिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सात रातदिन है। अवस्थितविभक्तिका अन्तर नहीं है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें अनन्तगुणहानिविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनुदिशसे अपराजित तकके देवोंमें वर्षपृथक्त्व और सर्वार्थसिद्धिमें पल्यके संख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थितविभक्तिका अन्तर नहीं है। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये।
विशेषार्थ-नाना जीवोंकी अपेक्षा काल बतलाते हुए जिन विभक्तिवालोंका काल सर्वदा बतलाया है उनमें अन्तरकाल नहीं है, क्योंकि वे सदा पाये जाते हैं, शेषमें अन्तर है । अपर्याप्त मनुष्योंमें अनन्तगुणवद्धि और अवस्थानका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर उतना ही बतलाया है जितना मनुष्य अपर्याप्तक मार्गणाका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर कहा है। इसी प्रकार अन्यमें भी समझ लेना चाहिये।
इस प्रकार अन्तरानुगम समाप्त हुआ। 8 १८४. भावानुगम की अपेक्षा सर्वत्र औदायिक भाव होता है।
६१८५. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - आंघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी अनन्तभागहानिविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं । असंख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । संख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। संख्यातगुणहानिविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। असंख्यातगुणहानिवाले जीव असं. ख्यातगुणे हैं । अनन्तभागवृद्धिविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । असंख्यातभागवृद्धि विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुण हैं । संख्यातभागवृद्धिविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। असंख्यातगुणवृद्धिविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । अनन्तगुणहानिविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। अनन्तगुणवृद्धिविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। अवस्थितविभक्तिवाले
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