Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
गां० २२.] अणुभागविहत्तीए पदणिक्खेवे सामित्त जहण्णाणुभागसंतकम्मादो उक्कस्साणुभागं बंधमाणओ तस्स उक्कस्सिया वड्डी। तस्सेव से काले उक्कस्समवहाणं। उकस्सिया हाणी कस्स ? अण्णदरेण उक्कस्साणुभागसंतकम्मिएण उक्कस्साणुभागकंडए हदे तस्स उक्कस्सिया हाणी । एवं सव्वणेरइय-तिरिक्खचउक्क०-मणुस्सतिय-देव-भवणादि जाव सहस्सारकप्पो त्ति । पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज० उक्क० वड्डी कस्स ? अण्णदरो जो तप्पाओग्गजहण्णाणुभागसंतकम्मादो तप्पाओग्गउक्कस्साणुभागबंध गदो तस्स उक्कस्सिया वड्डी। उक्क. हाणी कस्स ? अण्णदरो जो मणुस्सो मणुसिणी वा पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्तजोणिओं' वा उक्कस्साणुभागसंतकम्मिओ उकस्साणुभागकंडयं घादयमाणो पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तएसु उववण्णो तेण उक्कस्साणुभागकंडए हदे तस्स उक्कस्सिया हाणी। तस्सेव से काले उक्कस्समवहाण । एवं मणुसअपज्जत्ताणं । आणदादि जाव णवगेवज्जा ति उक्कस्सिया हाणी कस्स? अण्णदरस्स जेण उकस्साणुभागसंतकम्मिएण पढमसम्मत्ताहिमुहेण पढमाणुभागकंडयं हदं तस्स उक्क. हाणी । तस्सेव से काले उकस्समवहाणं । अणुदिसादि जाव सव्वहसिद्धि त्ति मोह० उक्कस्सिया हाणी कस्स ? अण्णदरस्स जेण तप्पाओग्गउक्कस्साणुभागसंतकम्मियवेदगसम्मादिहिणा अणंताणुबंधिचउक्कं विसंजोएमाणेण पढममणुभागकंडयं हदं तस्स उक्क. हाणी। तस्सेव से काले उक्कस्समवहाणं । एवं जाणिदूण अपने योग्य जघन्य अनुभागवाले सत्कर्मसे उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है उसके उत्कृष्ट वृद्धि होती है और उसीके अनन्तर समयमे उत्कृष्ट अवस्थान होता है। उत्कृष्ट हानि किसके हाती है ? जिस जीवके उत्कृष्ट अनुभागवाले कर्माकी सत्ता है वह जीव जब उत्कृष्ट अनुभागकाण्डकका घात करता है तो उसके उत्कृष्ट हानि होती है। इसी प्रकार सब नारकी, सामान्य तिर्यञ्च, पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च, पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्त, पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिनी, सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त, मनुज्यिनी, सामान्य देव और भवनवासीसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें जानना चाहिए। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जिसके अपने योग्य जघन्य अनुभागकी सत्तावाले कर्मोका अस्तित्व है वह जब अपने योग्य उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है तो उसके उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जिस मनुष्य, मनुष्यिनी अथवा पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चके उत्कृष्ट अनुभागकी सत्तावाले कर्मोंका अस्तित्व है वह उत्कृष्ट अनुभागकाण्डकका घात करता हुआ पञ्चन्द्रियतिर्यञ्चअपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ। उसके द्वारा उत्कृष्ट अनुभागकाण्डकका घात किये जाने पर उसके उत्कृष्ट हानि होती है और उसीके अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। इसीप्रकार अपर्याप्त मनुष्योंके जानना चाहिए । आनत स्वर्गसे लेकर नवप्रैवेयक तकके देवोंमें उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? उत्कृष्ट अनुभागकी सत्तावाला प्रथम सम्यक्त्वके अभिमुख जो देव पहले अनुभागकाण्डकका घात करता है उसके उत्कृष्ट हानि होती है और उसीके अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मोहकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? अपने योग्य उत्कृष्ट अनुभागकी सत्तावाले जिस वेदकसम्यग्दृष्टिने अनन्तानुबन्धी चतुष्कका विसंयोजन करते हुए प्रथम अनुभागकण्डकका घात कर किया है उसके उत्कृष्ट हानि होती है। उसीके अनन्तर
१. प्रा० प्रतौ पंचिंदियतिरिक्खजोणिश्रो इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org