Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
-
~
~
~
~
~
~
~
~
~
~
~
-
~~
~
-~
~
-
~
mannanam
२०४
अयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ १६३. समुक्त्तिणाणुगमो दुविहो-जहण्णो उक्स्सओ चेदि । तत्थ उक्कस्सए पयदं । दुविहो गिद्दे सो—ोघेण आदेसेण । ओघेण अस्थि मोह० उक्कस्सिया वड्डी उक्क० हाणी अवहाणं च । एवं चदुसु गदीसु । णवरि आणदादि जाव सव्वहसिद्धि त्ति अत्थि उक्क० हाणी अवहाणं च । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि ति ।
एवमुक्कस्सिया समुक्त्तिणा समत्ता । . १६४. जहण्णए पयदं । दुविहो णिद्दे सो-ओघेण आदेसेण । ओघेण अस्थि जहणिया वड्डी हाणी अवहाण च । एवं चदुसु वि गदीसु। णवरि आणदादि जाव सव्वद्या ति अत्थि जहणिया हाणी अवहाणं च । एवं जाव अणाहारि त्ति ।
एवं समुक्त्तिणाणुगमो समत्तो। १६५. सामित्तं दुविहं-जहण्णमुक्कसं च । उक्कस्सए पयदं। दुविहो णि सोओघेण आदेसेण । ओघेण मोह० उक्कस्सिया वड्री कस्स ? अण्णदरो जो तप्पाअोग्ग
विशेषार्थ-यद्यपि पदनिक्षेप भुजगार अनुगमका ही एक भेद है फिर भी इसमें उससे अन्तर है। भुजगार अनुगममें तो भुजगार, अल्पतर और अवस्थितविभक्तियोंका वर्णन है और पदनिक्षेपमें उन विभक्तियों के कारण वृद्धि, हानि और अवस्थानका वर्णन है।
६१६३. समुत्कीर्तनानुगम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उनमेंसे यहाँ उत्कृष्टसे प्रयोजन है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मोहनीयकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धि, उत्कृष्ट हानि और अवस्थान होता है, अर्थात् मोहनीयकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धि भी होती है, उत्कृष्ट हानि भी होती है और उत्कृष्ट अवस्थान भी होता है। इसीप्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि आनत स्वर्गसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थान होता है, उत्कृष्ट वृद्धि नहीं होती। इसप्रकार उत्कृष्ट वृद्धि, उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थानको जानकर उसे अनाहारी तक ले जाना चाहिये।
इस प्रकार उत्कृष्ट समुत्कीर्तना समाप्त हुई। १६४. अब जघन्यसे प्रयोजन है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और श्रादेश। ओघसे जघन्य वृद्धि, जघन्य हानि और जघन्य अवस्थान होता है। इसप्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि आनतसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें जघन्य हानि और जघन्य अवस्थान होता है, वृद्धि नहीं होती। इसप्रकार अनाहारी पर्यन्त जानना चाहिए।
विशेषार्थ-ओघकी तरह आदेशसे भी चारों गतियोंमें उत्कृष्ट और जघन्य वृद्धि, हानि और अवस्थान होते हैं, किन्तु अानतसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें न उत्कृष्ट वृद्धि होती है और न जघन्य वृद्धि, क्योंकि उनमें भुजगारका अभाव है। ..
..'' इस प्रकार समुत्कीर्तनानुगम समाप्त हुआ। १६५. स्वामित्व दो प्रकारका है -जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मोहनीयकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org