Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ अणुभागविहत्ती ४
लोग • असंखे० भागो सव्वलोगो वा । देवेसु भुज ० - अप्प ० - अवहि ० के ० १ लोग० असंखे० भागो अट्ठ-णवचोदस० देसूणा । एवं सव्वदेवारणं । णवरि सगसगपोसणं वत्तव्वं । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि ति । एवं पोसणाणुगमो समत्तो ।
- श्रघेण आदेसेण य । श्रघेण मोह ०
१५७. कालानुगमेण दुविहो णिद्द े सोतिण्णिपद०वि० ० सव्वद्धा । एवं तिरिक्खोघं ।
वालों का स्पर्शन लोकका असंख्यातवाँ भाग और सर्व लोक है । देवोंमें भुजगार, अल्पतर और अवस्थितविभक्तिवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागका और चौदह भागों में से कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार सब देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना अपना स्पर्शन कहना चाहिये । इस प्रकार स्पर्शनानुगमको जानकर उसे अनाहारक मार्गणा पर्यन्त ले जाना चाहिए ।
विशेषार्थ - आदेश से नरकगतिमें सब विभक्तिवाले नारकियोंने मारणान्तिक और उपपाद के द्वारा अतीत कालमें कुछ कम छह बटे चौदह राजु प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और शेष संभव पदोंके द्वारा अतीतकाल में तथा संभव सभी पदोंके द्वारा वर्तमान कालमें लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पहले नरकमें सम्भव सभी पदोंके द्वारा लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्र का स्पर्शन किया है । दूसरे से सातवें नरक तक सभी विभक्तिवाले नारकियोंने मारणान्तिक और उपपाद पदके द्वारा अतीत कालमें दूसरे नरकमें कुछ कम एक बटे चौदह, तीसरे में कुछ कम दो बटे चौदह, चौथेमें कुछ कम तीन बटे चौदह, पाँचवें में कुछ कम चार बटे चौदह, छटेमें कुछ कम पाँच बटे चौदह और सातवें में कुछ कम छै बटे चौदह भाग प्रमाण क्षेत्र का स्पर्शन किया है तथा संभव शेष पदोंके द्वारा अतीत कालमें और संभव सभी पदोंके द्वारा वर्तमान काल में लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सब पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च और सब मनुष्यों में तीनों विभक्तिवाले जीवोंने मारणान्तिक और उपपाद पदके द्वारा अतीत कालमें सर्वलोकका स्पर्शन किया है और संभव शेष पदोंके द्वारा अतीतकाल में तथा संभव सभी पदोंके द्वारा वर्तमान काल में लोकके असंख्यातवें भागका स्पर्शन किया है । सामान्य देवोंमें तीनों विभक्तिवाले जीवोंने विहार वत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, और विक्रियापदके द्वारा अतीत कालमें कुछ कम आठ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है और मारणान्तिक पदके द्वारा अतीत कालमें कुछ कम नौ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा संभव पदोंके द्वारा वर्तमान काल में और स्वस्थानस्वस्थान पदके द्वारा अतीत काल में लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्र का स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सब देवों में अपना अपना स्पर्शन कहना चाहिये । ओघसे सब लोकप्रमाण स्पर्शन है यह स्पष्ट ही है। इस प्रकार इस स्पर्शनको ध्यान में रखकर भुजगार आदि पदोंकी अपेक्षा ओघसे व चारों गतियोंमें स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए । अन्य मार्गणाओं में भी अपना अपना स्पर्शन जानकर जिस पदकी अपेक्षा जो स्पर्शन सम्भव हो उसे जान लेना चाहिए ।
इस प्रकार स्पर्शनानुगम समाप्त हुआ ।
$ १५७. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश | ओघसे मोहनीयकी तीनों विभक्तियोंका काल सर्वदा है । इसी प्रकार सामान्य तिर्यों में जानना चाहिए ।
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