Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ] अणुभागविहत्तीए भुजगारे पोसणं
१०३ १५५. खेताणुगमेण दुविहो णिसो-ओघेण आदेसेण। ओघेण मोह. भुज०-अप्प०-अवहि विहत्तिया केव० खेत्ते ? सव्वलोगे। एवं तिरिक्खोघं । सेसमग्गणासु मोह० सव्वपदा लोगस्स असंखे०भागे। एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति ।
एवं खेत्ताणुगमो समत्तो। १५६. पोसणाणु० दुविहो० णिसो-ओघेण आदेसेण। ओघेण मोह० तिण्णिपदविहत्तिएहि केवडियं खेचं पोसिदं ? सव्वलोगो । एवं तिरिक्खोघं । आदेसेण गेरइएमु सव्वपदविहत्तिएहि केवडियं खेत्तं पोसदं ? लोगस्स असंखे०भागो छचोदसभागा देमूणा । पढमपुढवि० खेत्तभंगो। विदियादि जाव सत्तमि ति तिण्हं पदाणं सगपोसणं वत्तव्वं । सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-सव्वमणुस्साणं भुज०-अप्प०-अवहि.
विशेषार्थ भागाभागानुगममें तो यह बतलाया गया था कि अमुक विभक्तिवाले अपनी अपनी जीवराशिके कितने भाग प्रमाण हैं। परिमाणानुगममें उनका परिमाण बतलाया गया है। ओघसे तीनों ही विभक्तिवालोंका परिमाण अनन्त है। आदेशसे जिन मार्गणाओंमें जीवराशि असंख्यात है उनमें प्रत्येक विभक्तिवालोंका परिमाण असंख्यात है, जिनमें जीवराशि संख्यात है उनमें प्रत्येक विभक्तिवालोंका परिमाण संख्यात है और जिनमें जीवराशि अनन्त है उनमें प्रत्येक विभक्तिवालोंका परिमाण अनन्त है। .
इस प्रकार परिमाणानुगम समाप्त हुआ। ६१५५. क्षेत्रानुगमसे निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मोहनीय कर्मकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थितविभक्तिवाले जीव कितने क्षेत्रमें पाये जाते हैं ? सर्व लोकमें । इसी प्रकार सामान्य तिर्यंचोंमें जानना चाहिए। शेष मार्गणाओंमें मोहनीयकी सब विभक्तिवाले जीव लोकके असंख्यानवें भागमें रहते हैं। इस प्रकार क्षेत्रानुगमको जानकर उसे अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिए ।
_ विशेषार्थ-ओघसे तीनों पदवालोंका सर्वलोक क्षेत्र सम्भव है इसलिए वह उक्त प्रमाण कहा है। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें भी घटित कर लेना चाहिए। शेष गतियोंमें वर्तमान क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है यह देखकर उनमें वह अपने अपने सम्भव पदोंकी अपेक्षा उक्त प्रमाण कहा है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा पर्यन्त शेष मार्गणाओंमें क्षेत्र जानना चाहिए।
इस प्रकार क्षेत्रानुगम समाप्त हुआ। १५६. स्पर्शनानुगमसे निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मोहनीय कर्मकी तीनों विभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? समस्त लोकका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें सब विभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पहली पृथिवीमें क्षेत्रके समान भंग है। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी पर्यन्त तीनों विभक्तियोंका अपना अपना स्पर्शन कहना चाहिये । सब पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च और सब मनुष्योंमें भुजगार, अल्पतर और अवस्थितविभक्ति.
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