Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ १२५. पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्तएसु मोह० उक्क० ज० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे भागो । अणुक्क. सव्वद्धा । एव तस-तसपज्जत-चक्खुदंसणि ति ।
$ १२६. आहार० मोह० उक्कस्साणुक्कस्साणु० ज० एगस०, उक्क० अंतोमुहुत्तं । एवमवगद०-अकसा०--सुहुमसापराय०--जहाक्वादसंजद त्ति । आहारमिस्स० मोह. उक्कस्साणुक्कस्स० जहण्णुक्क० अंतोमु० । अचक्खु० मोह० उक्कस्साणु० ज० अंतोमु०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । अणुक्क० सव्वद्धा । एवं भवसि०-अभवसि०-मिच्छादिहि ति। रहता है, क्योकि यहाँ यह सम्भव है कि किसी उत्कृष्ट अनुभागका घात न हो और यहाँ अनुत्कृष्ट अनुभागमे वृद्धि भी सम्भव नहीं है, अतः यहाँ उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनभागवालो का काल सर्वदा कहा है। यहाँ आभिनिबोधिकज्ञानी आदि अन्य जो मार्गणाऐं बतलाई हैं उनमें इसी प्रकार काल घटित कर लेना चाहिए। मात्र आभिनिबोधिकज्ञानी आदि कुछ मार्गणाऐं इसकी अपवाद हैं। बात यह है कि इन मार्गणाओ मे यथासम्भव उत्कृष्ट अनुभागवाले मिथ्यादृष्टि भी आते हैं, अतः इनमे उत्कृष्ट अनुभागवालों का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। यदि जिनके उत्कृष्ट अनुभागमे एक समय काल शेष है ऐसे मिथ्यादृष्टि इन मार्गणाा में आते हैं और दूसरे समयमे उत्कृष्ट अनुभागवाले मिथ्यादृष्टि नहीं आते हैं तो इन आभिनिबोधिकज्ञानी आदिमे उत्कृष्ट अनुभागवालों का एक समय काल उपलब्ध होता है, और जिनके उत्कृष्ट अनुभागका काल अन्तर्मुहूर्त है ऐसे जीव निरन्तर आते रहते हैं तो यहाँ उत्कृट अनुभागवालो का उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होता है। यह देखकर श्राभिनिबोधिकज्ञानी आदि सात मार्गणाओं में उत्कृष्ट अनुभागवालो का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है।
६ १२५. पञ्चद्रिय और पञ्चन्द्रिय पर्याप्तकोंमें मोहनीयकर्मकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्या असंख्यातवें भाग है। अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका काल सर्वदा है। इसी प्रकार त्रस, त्रसपर्याप्त और चक्षुदर्शनवालेके जानना चाहिए।
विशेषार्थ-यद्यपि पञ्चन्द्रिय जीव ही मोहनीयका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करते हैं, परन्तु कदाचित् ऐसा सम्भव है कि कोई पञ्चेन्द्रिय जीव मोहनीयका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध न करें और जिनके मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागके कालमें एक समय शेष हो ऐसे जीव ही शेष रहें, अत: यहाँ पञ्चेन्द्रियद्विकमें मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागवालोंका जघन्य काल एक समय कहा है। तथा इनमें उत्कृष्ट अनुभागवालोंका उत्कृष्ट काल पल्य असंख्यातवें भागप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। इसी प्रकार त्रस, त्रसपर्याप्त और चक्षुदर्शनी जीवोंमें उक्त काल घटित कर लेना चाहिए । इन सब मार्गणाओं में अनुत्कृष्ट अनुभागवालोंका काल सर्वदा है। यह स्पष्ट ही है।
६ १२६. आहारककाययागियों में मोहनीयकर्मकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्ति का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार अपगतवेदी, अकषायी, सूक्ष्मसाम्परायसंयत और यथाख्यातसंयतामें जानना चाहिए । आहारकमिश्रकाययोगियोंमें मोहनीयकर्मकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अचक्षुदर्शनवालोंमें मोहनीयकर्मकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग है। अनुत्कृष्ट का काल सर्वदा है। इसी प्रकार
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