Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ $१०४. आदेसेण णेरइएसु उकस्साणुकस्साणुभाग. केव० १ लोग० असंखे०भागो छचोदसभागा वा देसूणा । पढमपुढवि० खेत्तभंगो। विदियादि जाव ससमि त्ति मोह० उक्क० अणुक्क० लोग० असंखे०भागो एग०--वे--तिरिण--चत्तारि--पंच-छचोइस० देसूणा ।
$ १०५. तिरिक्खेसु मोह. उक्क० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा। अणुक्क० अोघं । सव्वपंचिंदियतिरिक्व०-सव्वमणुस्स० उकस्साणुकस्स० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । णवरि पंचिंदियतिरिक्व-मणुस्सअपज्जत्ताणमुक्क० खेत्तभंगो । देव० उक्कस्साणुक्कस्साणुभाग. केव० ? लोग० असंखे०भागो अह-णव चोदसभागा देसूणा पोसिदा । एवं सव्वदेवाणं । णवरि सग-सगपोसणं जाणिय वत्तव्वं । क्षेत्रका स्पर्शन किया है, तथा वेदना, कषाय, विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकसमुद्घातकी अपेक्षा वर्तमान कालमे लोकके असंख्यातवें भागका स्पर्शन किया है और अतीत कालमे कुछ कम आठ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट अनुभागवाले चूँकि सर्व लोकमें पाये जाते हैं, अतः उन्होंने सम्भव पदोंके द्वारा सर्वलोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
___ १०४. आदेशसे नारकियोंमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और लोकके चौदह भागोंमे से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पहली पृथिवीमें क्षेत्रके समान भंग है। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक मोहनीयकर्मकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और लोकके चौदह भागोंमेंसे क्रमसे कुछ कम एक, दो, तीन, चार, पाँच और छह भागोंका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-सामान्यसे नारकियोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजुप्रमाण है। द्वितीयादि पृथिवियोंमें वर्तमान स्पर्शन तो इतना ही है और अतीत स्पर्शन क्रमसे कुछ कम एक बटे चौदह राजुप्रमाण आदि है । यत: इन दोनों प्रकारके स्पर्शनके समय मोहनीयकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्ति सम्भव है, अतः इनका स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। पहली पृथिवीमें स्पर्शन क्षेत्रके समान ही है, अत: इसमें दोनों प्रकारकी विभक्तिवालोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है।
६१०५. तिर्यञ्चोंमें मोहनीयकर्मके उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालोंका स्पर्शन ओघके समान है। उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले सब पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च
और सब मनुष्योंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और सब लोकका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले पञ्चन्द्रियतिर्यश्चअपर्याप्त और मनुष्यअपर्याप्तकों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले देवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सब देवोंमें स्पशन कहना चाहिये। इतनी विशेषता है कि अपने अपने स्पर्शनको जानकर कथन करना चानिये ।
विशेषार्थ-तिर्यञ्चोंमें मारणान्तिक समुद्घात और उपपाद पदके समय भी मोहनीयकी
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