Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
अणुभागविहत्तीए पोसणं पज्जत्तापज्जत्त--तेउ०--बादर०--तेउवादरतेउअपज्ज०--सुहुमतेउ०--मुहुमतेउपजत्तापज्जत्तवाउ०-बादरवाउ०--बादरवाउअपज्ज-सुहुमवाउ-सुहुमवाउपज्जत्तापज्जत्त--सव्ववणप्फदिसव्वणिगोद-ओरालियमिस्स-कम्मइय०-मदि-मुदअण्णाणि०--असंजद०--किएह-णीलकाउ०-अभवसि०-मिच्छादिहि-असरिण-अणाहारि त्ति। बादरवाउपज्ज० ज० अज० लोगस्स संखे०भागो।
एवं खेत्ताणुगमो समत्तो। ६१०३. पोसणाणुगमो दुविहो—जहएणओ उक्कस्सओ चेदि । उक्कसे पयदं । दुविहो णि सो-ओघे० आदेसे०। ओघेण मोह० उक्कस्साणुभागविहत्तिएहि केवडियं खेत्तं पोसिदं ? लोग० असंखे०भागो अहचोदसभागा वा देसूणा सव्वलोगो वा । अणुक्क० सव्वलोगो। यिक अपर्याप्त, तैजस्कायिक, बादर तैजस्कायिक, बादर तैजस्कायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म तैजस्कायिक, सूक्ष्म तैजस्कायिक पयोप्त, सूक्ष्म तैजस्कायिक अपर्याप्त, वायुकायिक, बादर वायुकायिक, बादर वायुकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्मवायुकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्त, सब वनस्पतिकायिक, सब निगोदिया, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी, असंयत, कृष्णलेश्यावाले नीललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी और अनाहारकोंमें जानना चाहिए। बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंमें जघन्य और अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भाग प्रमाण है।
विशेषार्थ-ओघसे जघन्य अनुभागका सत्त्व क्षपक सूक्ष्मसाम्परायिकके अन्तिम समय में होता है, अत: ओघसे जघन्य अनुभागवालोंका क्षेत्र लोकका असंख्यातवाँ भाग और अजघन्य अनुभागवालोंका क्षेत्र सर्वलोक कहा है। जिन मार्गणाओंमें जीवोंका क्षेत्र सब लोक है तथा जघन्य अनुभाग भी ओघकी तरह होता है उनमें ओघकी तरह क्षेत्र कहा है। जैसे काययोगी आदि। आदेशसे नरकगतिसे लेकर संज्ञी पर्यन्त जिन मार्गणाओंमें जीवोंका क्षेत्र लोकका असंख्यातवाँ भाग है उनमें जघन्य और अजघन्य अनुभागवालोंका क्षेत्र लोकका असंख्यातवाँ भाग कहा है । तथा सामान्य तिर्यञ्चोंमें और एकेन्द्रियसे लेकर अनाहारक पर्यन्त जिन मार्गणाओं में जीवोंका क्षेत्र सर्व लोक है तथा जघन्य अनुभाग हतसमुत्पतिककर्मा एकेन्द्रिय जीवके पाया जाता है उनमें जघन्य और अजघन्य अनभागवालोंका क्षेत्र सर्व लोक कहा है। केवल बादर वायुकायिकपर्याप्तक जीवोंमें दोनों विभक्तियोंका लोकका संख्यातवाँ भाग क्षेत्र कहा है, क्योंकि इस मार्गणाका क्षेत्र ही इतना है।
___ इस प्रकार क्षेत्रानुगम समाप्त हुआ। ११०३. स्पर्शनानुगम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्ट से प्रयोजन है । निर्देश दो प्रकारका है ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । ओघसे मोहनीयकर्मकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका, लोकके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग प्रमाण क्षेत्रका और सब लोकका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवालोंने सब लोकका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-ओघसे उत्कृष्ट अनुभागवालोंने मारणान्तिक और उपपादकी अपेक्षा सर्व लोक
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