Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
अणुभागविहत्तीए परिमाण त्ति । मणुसपज्जत्तादिसंखेजरासीसु जहण्णाणु० सव्वजी० केव० १ संखे भागो। अज० संखेज्जा भागा।
एवं जहएणओ भागाभागाणुगमो समत्तो । ६३. परिमाणाणुगमो दुविहो-जहएणओ उकस्सओ चेदि । उक्स्सए पयदं । विहो णि सो-ओघे० आदेसे०। ओघेण उक्कस्साणुभागविहत्तिया केवडिया ? असंखेजा । अणुक्क० दव्वपमाणेण के० ? अणंता। एवं तिरिक्वोघं सव्वेइंदिय-सव्ववणफदिकाइय०-सव्वणिगोद०-कायजोगि०--ओरालिय०-ओरालियमिस्स०कम्मइय०-णस०-चत्तारिकसाय-दोषिणअण्णाणि--असंजद०-अचक्खु०-किएह-णीलकाउ०-भवसि०-अभवसि०-मिच्छादिहि०-असणिण-आहारि-अणाहारि ति ।
४. गाभण मल-अणुक्रम्याशुभागविनिया जीवा दअपमापण .. असंखेज्जा । एवं सध्यणरइय-सव्यपाँचंदियतिरिक्ख-मणुस-मणुसअपज्ज.देव-भवणादि जाव अवराइद. सव्वविगलिंदिय-सव्वपंचिंदिय-सव्वचत्तारिकाय-बादरवणप्फदिकाइयपत्ते यसरीर-पज्जत्तापज्जत्त-सव्वतसकाइय-पंचमण०-पंचवचि०-वेव्विय०वेउब्वियमिस्स०-इत्थि० --पुरिस०-विहंग०--आभिणि-सुद०--अोहि०--संजदासजद०और अनाहारक जीवोंमें जानना चाहिए। मनुष्यपर्याप्त आदि संख्यात राशियोंमें जघन्य अनुभागविभक्तिवाले सब जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं और अजघन्य अनुभागविभक्तिवाले संख्यात बहुभाग प्रमाण हैं।
___ इस प्रकार जघन्य भागाभागानुगम समाप्त हुआ। ९३. परिमाणानुगम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट। प्रकृतमें उत्कृष्टसे प्रयोजन है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। ओघकी अपेक्षा उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? अनन्त हैं। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्च तथा सब एकेन्द्रिय, सब,वनस्पतिकायिक, सब निगोदिया, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधी, मानी, मायावी, लोभी, मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनवाले, कृष्णलेश्लावाले, नीललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनाहारकोंमें जानना चाहिए।
६ ९४. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चन्द्रियतिर्यञ्च, मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव, भवनवासीसे लेकर अपराजित विमान तकके देव, सब विकलेन्द्रिय, सब पञ्चन्द्रिय, सब पृथिवीकायिक, सब जलकायिक, सब तैजस्कायिक, सब वायुकायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर तथा उनके पर्याप्त और अपर्याप्त, सब उसकायिक, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभंगज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, संयतासंयत, चक्षुदर्शनवाले, अवधि
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