Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
अणुभागविहत्तीए अंतरं ५८. सण्णियाणुवादेण सण्णीम मोह० ज० जहण्णुक० एगस०। अज० ज. खुद्दाभवग्गहणं, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं । असण्णि. मोह० ज० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । अज० ज० एगसमओ, उक्क० असंखेज्जा लोगा।
$ ५६. आहारीसु मोह० ज० जहण्णुक्क० एगस० । अज० ज० खुद्दाभवग्गहणं तिसमयूणं, उक्क० अंगुलस्स असंखे० भागो असंखेज्जाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ। अणाहारि० कम्मइयभंगो।
___ एवं जहण्णो कालाणुगमो समत्तो। ६०. अंतराणुगमेण दुविहमंतरं-जहण्णमुक्कस्सं च । उक्कस्से पयदं । दुविहो णि सो-ओघे० आदेसे । ओघे० मोह ० उक्कस्साणुभागमंतरं केवचिरं? ज० अंतोमु०, उक्क० अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्क० जहण्णुक्क० अंतोमुहुत्तं । मोटे तौरपर दोनों सम्यक्त्वोंके जघन्य और उत्कृष्ट कालकी तरह जानना चाहिए।सासादनसम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जितना जघन्य और उत्कृष्ट काल है उतना ही उनमें जघन्य और अजघन्य अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट काल होता है । जघन्य अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होनेसे मिथ्यादृष्टिके उसका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। तथा मिथ्यात्वमें अजघन्य अनुभाग कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक और अधिकसे अधिक असंख्यात लोकप्रमाण काल तक रहता है यह देखकर यहाँ वह उक्त प्रमाण कहा है।
५८. संज्ञित्वकी अपेक्षा संज्ञियोंमें मोहनीयकर्मकी जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण और उत्कृष्ट काल सौ पृथक्त्व सागर है। असंज्ञियोंमें मोहनीयकर्मकी जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तथा अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक है।
विशेषार्थ-संज्ञीके क्षपक सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान सम्भव होनेसे इसमें जघन्य अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा संज्ञियोंका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल सौ सागर पृथक्त्व होनेसे इसमें अजघन्य अनुभागका उक्त प्रमाण काल कहा है। असंज्ञियोंमें जिस प्रकार एकेन्द्रियोंमें काल घटित करके बतला आये हैं इस प्रकार घटित कर लेना चाहिए।
५९. आहारकोंमें मोहनीयकर्मकी जघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागविभक्तिका जघन्य काल तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहण और उत्कृष्ट काल अंगुलका असंख्यातवां भाग है जो कि असंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी कालप्रमाण है। अनाहारकोंमें कार्मणकायके समान भंग होता है।
इस प्रकार जघन्य कालानुगम समाप्त हुआ। ६०, अन्तरानुगमकी अपेक्षा अन्तर दो प्रकारका है--जघन्य और उत्कृष्ट । यहाँ उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । ओघकी अपेक्षा मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट अनुभागका अन्तर कितना है ? जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्त काल है । वह अनन्त काल असंख्यात पुद्गलपरावर्तनप्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनु
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