Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ ८४. वेउव्वियमिस्स०-आहार-आहारमिस्स०-अवगद०--अकसा०-सुहुमसांपराय०--जहाक्खाद०--उवसम०--सासण-सम्मामिच्छादिहीणं मणुसअपज भंगो । संजद-सामइय-छेदो०-परिहार०-संजदासंजद-मणपज्ज-मुक्कले०-खइय०सम्मादिहीणमाणदभगो।
एवं णाणाजीवेहि उक्स्सभंगविचयाणुगमो समत्तो।
जीवोंमें जानना चाहिए।
८४. वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, अकषायी, सूक्ष्मसाम्परायसंयत, यथाख्यातसंयत, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि
और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंमें अपर्याप्त मनुष्यके समान भंग है। संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, संयतासंयत, मनःपर्ययज्ञानी, शुक्ललेश्यावाले और क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें आनत कल्पके समान भंग है।
विशेषार्थ-इस अनुयोगद्वारमे नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचयका विचार किया है। ओघसे उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके तीन तीन भंग ही घटित होते हैं । यत: उत्कृष्ट अनुभागकी सत्ताका काल और जीव बहुत कम हैं, इसलिये कदाचित् ऐसा समय आता है जब उत्कृष्ट अनुभागकी सत्तावाला कोई जीव न हो और सब जीव अनुत्कृष्ट अनुभागवाले हों। कदाचित् अनेक जीव उत्कृष्ट अनुभागसे रहित और एक जीव सहित हो। कदाचित् अनेक जीव अनुत्कृष्ट अनुभागसे सहित और एक जीव उससे रहित हो। कदाचित् अनेक जीव उत्कृष्ट अनुभागसे सहित और अनेक जीव उससे रहित हों। इस प्रकार उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके रहने न रहने की अपेक्षासे ६ भंग होते हैं। आदेशसे भी चारों गतियोंमें यही ६ भंग बनते हैं। केवल मनुष्य अपर्याप्तके आठ भंग होते हैं जो इस प्रकार हैं-कदाचित् सब जीव उत्कृष्ट अनुभागसे रहित होते हैं। कदाचित् सब जीब उत्कृष्ट अनुभागसे सहित होते हैं। कदाचित् एक जीव उत्कृष्ट अनुभागसे रहित होता है । कदाचित् एक जीव उत्कृष्ट अनुभागसे सहित होता है। कदाचित् अनेक जीव उत्कृष्ट अनुभागसे सहित और अनेक जीव उससे रहित होते हैं । कदाचित् अनेक जीव उत्कृष्ट अनुभागसे सहित और एक जीव उससे रहित होता है। कदाचित् एक जीव उत्कृष्ट अनुभागसे सहित और एक जीव उससे रहित होता है। कदाचित अनेक जीव उत्कृष्ट अनुभागसे रहित और एक जीव उससे सहित होता है। इसी प्रकार अनुत्कृष्ट अनुभागके भी आठ भंग होते हैं। मनुष्य अपर्याप्तमे ये आठ भंग होनेका कारण यह है कि यह सान्तर मार्गणा है। इसमे कदाचित् एक भी जीव नहीं पाया जाता और कदाचित् एक या अनेक जीव पाये जाते हैं, अतः उक्त आठ आठ भंग बन जाते हैं। अन्य भी वैक्रियिकमिश्र आदि सान्तर मार्गणाओंमें इसी प्रकार आठ आठ भंग होते हैं। आनत स्वर्गसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक तथा संयत आदिमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागवाले जीव सदा पाये जाते हैं। कारण कि इनमें यदि अनुत्कृष्ट अनुभागवाले जन्म लेते है तो उनके तो नियमसे अनुत्कृष्ट अनुभाग ही बना रहता है और यदि उत्कट अनुभागवाले जन्म लेते हैं तो उनके जब तक क्रियान्तरके द्वारा उसका घात नहीं होता तब तक वही बना रहता है । संयत, सामायिक संयत आदिके आनतादिकके समान ही जानना चाहिए । तथा शेषमे ओघके समान घटित कर लेना चाहिए।
इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा उत्कृष्टभंगविचयानुगम समाप्त हुआ।
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