Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
अणुभागविहत्तीए कालो बादरपुढविभंगो। तेसिं पज्जत्तापज्जत्ताणं बादरपुढविपज्जत्तापज्जत्तभंगो। मुहुमणिगोदाणं सुहुमपुढविभंगो। तसकाइय-तसकाइयपज्जतएमु मोह० उक्क० ज० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । अणुक्क० ज० एगस०, उक्क० वेसागरोवमसहस्साणि पुव्वकोडिपुधत्तेणभहियाणि [ वेसागरोवमसहस्साणि ]
३४. जोगाणुवादेणं पंचमण-पंचवचिजोगीसु मोह० अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु । ओरालियकायजोगीसु मोह. अणुक्क० ज० एगस०, उक्क० वावीस वस्ससहस्साणि देसूणाणि । ओरालियमिस्सकायजोगीसु मोह० अणुक्क० ज० खुद्दाभवग्गहणं देसूणं, उक्क० अंतोमुहुत्तं । वेउव्वियकायजोगीसु मोह० अणुक० ज० एगस०, उक० अंतोमु० । वेउव्वियमिस्स० मोह० अणुक० जहण्णुक्क० अंतोमु० । कम्मइय० मोह० उक्क० अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० तिणि समया। आहार-आहारमिस्स० मोह० उक्क० अणुक्क० जहण्णुक्क० अंतोमु० । णवरि आहारकायजोगीसु जह० एगस । जीवोंमें बादर पृथिवीकायिकके समान भङ्ग है और बादर निगोदिया पर्याप्तक तथा अपर्याप्तकोंमें बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तक और अपर्याप्तकके समान भङ्ग है। सूक्ष्म निगोदिया जीवोंमें सूक्ष्मपृथिवीकायिकके समान भङ्ग है। त्रसकायिक तथा त्रसकायिकपर्याप्तकोंमें मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूत है। तथा अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल क्रमसे पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक दो हजार सागर और दो हजार सागर है।
विशेषार्थ-ऊपर कही गई स्थावरकायसम्बन्धी मार्गणाओंमें भी पहलेके समान ही अनुत्कृष्ट अनुभाग का जघन्य काल उत्कृष्ट अनुभागके कालसे हीन अपनी अपनी भवस्थिति प्रमाण है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी कायस्थिति प्रमाण है। सामान्य त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्तकोंमें उत्कृष्ट अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट काल पूर्ववत् जानना चाहिए। तथा इनमें उत्कृष्ट अनुभागबन्ध हो सकनेके कारण अनुत्कृष्ट अनुभागका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी कायस्थितिप्रमाण है, इसलिए इन सबमें उक्त प्रमाण काल कहा है।
$३४. योगकी अपेक्षा पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगियोंमें मोहनीय कर्मकी अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। औदारिककाययोगियोंमें मोहनीयकर्मकी अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम बाईस हजार वर्ष है। औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें मोहनीयकर्मकी अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्ति का जघन्य काल कुछ कम क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। वैक्रियिककाययोगियोंमें मोहनीय कर्मकी अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें मोहनीय कर्म की अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है । कार्मणकाययोगियोंमें मोहनीय कमकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय है । आहारकका ययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियोंमें मोहनीयकर्मकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है । इतनी विशेषता है कि
१. ता. प्रतौ उक्क० वेसागरोवमसहस्साणि पुवकोडिपुधत्त पब्भहियाणि च जोगाणुवादेण, प्रा. प्रतौ उक्क० सागरोवमसहस्साणि जोगाणुवादेण इति पाठः ।
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