Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ ३३. कायाणुवादेण पुढवि० आउ०-तेउ०-बाउक्काइएसु मोह० अणुक्क० जह० उक्कस्साणुभागकालेणणं खुद्दाभवग्गहणं, उक्क० असंखेज्जा लोगा । एवमेदेसि बादराणं । णवरि उक्क० कम्महिदी । बादरपुढवि०-बादराउ०--बादरतेउ०-बादरवाउ०पज्जत्तएसु अणुक्क जह० अंतोमु०,उक्क० संखेजाणि वाससहस्साणि । एदेसिमपज्जताणं बादरेइंदियअपज्जत्तभंगो । सुहुमपुढवि०--सुहुमआउ०-सुहुमतेउ०-सुहुमवाउक्काइएसु मोह० अणुक्क० ज० देसूणं खुद्दाभवग्गहणं, उक्क० असंखेज्जा लोगा। एदेसिं पज्जत्ताणमपज्जत्ताणं च सुहमेइंदियपज्जत्तापज्जत्तभंगो । बादरवणप्फदिकाइयाणं तेसिं पज्जत्तापजत्ताणं च बादरेइंदिय-बादरेइंदियपज्जतापज्जताण भंगो । सुहुमवणप्फदिकाइय० तेसिं पज्जत्तापज्जत्ताणं सुहुमेइंदिय०सुहुमेइंदियपज्जत्तापज्जत्तभंगो । बादरवणप्फदिकाइयपत्ते यसरीराणं बादरपुढविभंगो.। तेसिं पजत्तापज्जत्ताणं बादरपुढविपज्जत्तापज्जत्तभंगो। णिगोदेसु मोह. अणुक्क० ज० खुद्दाभवग्गहणं देसूणं, उक्क० अड्डाइज्जपोग्गलपरियट्टा। बादरणिगोदाणं पर्यन्त इसी प्रकार जानना चाहिए। अर्थात अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल तो उत्कृष्ट अनुभागके कालसे रहित अपनी अपनी जघन्य भवस्थिति प्रमाण है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी कायस्थितिप्रमाण है । पश्चन्द्रिय सामान्य और पश्चन्द्रिय पयोप्तकमें उत्कृष्ट अनुभागका जघन्य काल पूर्ववत् एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहू त है। अनुत्कृष्ट अनुभागका जघन्य काल एक समय है, क्योंकि इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्ध हो सकता है। तथा उत्कृष्ट काल पञ्चन्द्रिय सामान्य और पञ्चन्द्रियपर्याप्तकको कायस्थिति प्रमाण है।
३३. कायकी अपेक्षा पृथिवीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिकोंमें मोहनीय कर्मकी अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल उत्कृष्ट अनुभागके कालसे हीन क्षुद्रभव ग्रहण प्रमाण है और उत्कृष्ट काल असंख्यात लाक है। इसी प्रकार बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर तेजस्कायिक और बादर वायुकायिकोंमें जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें उत्कृष्ट काल कर्मस्थितिप्रमाण है। बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तक, बादर जलकायिक पर्याप्तक, बादर तेजस्कायिक पर्याप्तक और बादर वायुकायिक पर्याप्तकोंमें अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है । तथा इन्हीं अपर्याप्तकोंमें बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तक के समान भंग है। सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म अप्कायिक, सूक्ष्म तेजस्कायिक
और सूक्ष्म वायुकायिकोंमें मोहनीय कमकी अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल कुछ कम ज्ञद्रभवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल असंख्यात लोकप्रमाण है। इनके पर्याप्तक और अपप्तिकोंमें सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक और सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके समान भंग है। बादर वनस्पतिकायिकोंमें बादर एकेन्द्रियके समान, बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तकोंमें बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके समान और बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्तकोंमें बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके समान भङ्ग है । सूक्ष्म वनस्पतिकायिक तथा उनके पर्याप्तक और अपर्याप्तकोंमें क्रमसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकन्द्रिय पर्याप्तक और सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके समान भङ्ग है । बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीरी जीवोंमें बादर पृथिवीकायके समान भंग है। बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीरी पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीवोंमें बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तक और बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्तकके समान भङ्ग है। निगोदिया जीवोंमें मोहनीयकर्मकी अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल कुछ कम क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण है। और उत्कृष्ट काल ढाई पुद्गलपरावर्तनप्रमाण है। बादर निगोदिया
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