Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहत्ती ३ ७६. चत्तारिकसाय० मोह० जहण्णहिदी जहएणुक्क० एगसमओ। अजह० ज० एगसमओ, उक्क० अंतोमु०।
८०. आभिणि-सुद०-ओहि० मोह० जहण्णहिदी जहएणुक्क० एगसमओ । अजह० जहण्णुक्कस्सेण जहण्णुक्कस्सहिदी। एवं मणपज्जव०-संजद-सामाइय-छेदो०परिहार०--संजदासंजद०--ओहिदंस०-सुक्कले०-सम्मादि-खइय०-वेदग० वसव्वं । विहंग जह० जहएणुक्क० एयसमओ। अजह० जह० एगसमो, उक्क० सगहिदी । चक्ख० तसपज्जत्तभंगो।
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है। तथा पुरुषवेदका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है,अतः पुरुषवेदमें अजघन्य स्थितिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त कहा । शेष कथन सुगम है । ---- ७६. चारों कषायवाले जीवोंके मोहनीयकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट सत्त्वकाल एक समय है । तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल एक समय और उत्कृष्ट सत्त्वकाल अन्तर्मुहूर्त है।
विशेषार्थ-क्षपक जीवके अपनी अपनी कषायके अन्तिम समयमें मोहनीयकी जघन्य स्थिति प्राप्त होती है, अतः इनके जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा । तथा प्रत्येक कषायका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, अतः इनमें अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा।
८०. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंके मोहनीयकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट सत्त्वकाल एक समय और अजघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट सत्त्वकाल क्रमसे अपनी अपनी जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । इसी प्रकार मनःपयर्यज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, संयतासंयत, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके कहना चाहिये । विभंगज्ञानी जीवोंके जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट सत्त्वकाल एक समय है। तथा अजघन्य स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल एक समय और उत्कृष्ट सत्त्वकाल अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । चक्षुदर्शनी जीवोंके सपर्याप्तकोंके समान जानना चाहिये। . विशेषार्थ-श्राभिनिबोधिकज्ञानी,श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी क्षपक जीवके दसवें गुणस्थानके अन्तिम समयमें मोहनीयकी जघन्य स्थिति प्राप्त होती है, अतः इनके जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है । शेष कथन सुगम है । मूल में और जितनी मार्गणाएं गिनाई हैं उनमें भी जघन्य स्थितिके स्वामित्वका विचार करके जघन्य स्थितिके जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समयका कथन करना चाहिये । जो चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला उपरिम अवेयकवासो देव आयुके अन्तिम अन्तमहूर्तमें मिथ्यात्वको प्राप्त हो गया उसके अन्तिम समयमें विभंगज्ञानमें मोहनीयकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय पाया जाता है। तथा जो अवधिज्ञानी शेष देव या नारकी अन्तिम समयमें मिथ्यादृष्टि हो जाता है उसके विभंगज्ञानमें अजघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है। तथा अजघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल विभंगज्ञानके उत्कृष्ट काल
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