Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ द्विदिहिती
एसो अत्थो णव्वदे; तहाणुवलंभादो । चरिमसमय अणिल्लेविदस्सेवे त्ति किम' बुच्चदे १ ण, दुचरिमादिसमएस बंध हिदीगं गालणड तदुत्तदो । कोहसंजलणं चरिमसमयअणिल्लेविदे संते जो खवओ ताए अवस्था वट्टमाणो तस्स जहण्णहिदिविहत्ती होदित्ति संबंध काव्वो । बे मासा अंतोमुहुत्तूणा त्ति जहण्णद्विदिवमाणमेत्थ किण्ण परुविदं १ जहण्णहिदिअद्धाच्छेदे परूविदस्स परूवणाए फलाभावादो ।
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* एवं माण-माया संजलणाणं ।
९ ४३७. जहा कोहसंजलणस्स जहण्णसामित्तं वृत्तं तहा माणमायासंजलणाणं वत्तव्वं । चरिमसमय रिल्लेविदे माणसंजलणे जो खवओो तस्स माणसंजलणजहण्णद्विदिविहत्ती । चरिमसमय अगिल्लेविदे माया संजलणे जो खवओो तस्स मायासंजल - जहणद्विदिविहत्ति त्ति भणिदं होदि । अंतोमुहुत्त रामासद्धमासद्विदिपमाणपरूवणा एत्थ ण कायव्वा । कुदो ? श्रद्धाच्छेद परूवणाए तत्थ वा वारादो ।
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है । परन्तु सूत्रके बिना यह अर्थ जाना नहीं जाता है, क्योंकि सूत्र के बिना इस प्रकारके अर्थका ज्ञान होना शक्य नहीं ।
शंका- सूत्र में 'चरिमसमय पिल्लेविदस्स' यह किसलिये कहा है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि द्विचरम आदि समयों में बन्धस्थितियोंके गालन करनेके लिये 'चरिमसमयअणिल्लेविदस्स' यह पद कहा है ।
क्रोधसंज्वलनकी सत्त्वव्युच्छित्तिके अन्तिम समयके प्राप्त होनेपर जो क्षपक उस अवस्थामें विद्यमान है उसके जघन्य स्थितिविभक्ति होती है इस प्रकार उक्त सूत्रका सम्बन्ध करना चाहिये । शंका- यहाँ पर जघन्य स्थितिका प्रमाण अन्तमुहूर्त कम दो महीना है ऐसा क्यों नहीं कहा ?
समाधान- नहीं, क्योंकि जघन्य स्थितिके प्रमाणका जघन्य स्थिति अद्धाच्छेद प्रकरण में कथन कर आये हैं, अतः यहाँ उसका पुनः कथन करनेसे कोई लाभ नहीं है ।
* इसी प्रकार उस क्षपकके संज्वलन मान और संज्वलन मायाकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है ?
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९ ४३७. जिस प्रकार क्रोधसंज्वलनका जघन्य स्वामित्व कहा है उसी प्रकार मान और माया संज्वलनका जघन्य स्वामित्व कहना चाहिये। जो क्षपक मान संज्वलनकी सत्त्वव्युच्छित्तिके अन्तिम समय में विद्यमान है उसके मान संज्वलनकी जघन्य स्थिति विभक्ति होती है । तथा जो क्षपक मायासंज्वलनकी सत्त्वव्युच्छित्तिके अन्तिम समयमें विद्यमान है उसके माया संज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है, यह उक्त सूत्रका अभिप्राय है ।
यहाँ पर मानसंज्वलनकी अन्तमुहूर्त कम एक महीना और मायासंज्वलनकी अन्तर्मुहूर्त कम आधा महीना प्रमाण स्थितिका कथन नहीं करना चाहिये, क्योंकि उसे श्रद्धाच्छेदकी प्ररूपणामें बतलाये हैं ।
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