Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
गा० २२ ]
हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिअंतरं ® उक्कस्समसंखेजा पोग्गलपरियट्टा ।
$ ५३९. कुदो? उक्कस्सहिदि बंधिय पडिहग्गो होदूण अणुक्कस्सहिदिं बंधमाणो ताव अच्छदि जाव अणुक्कस्सहिदिबंधगद्धाए उक्कस्सियाए चरिमसमओ ति । तदो एइदिएसुववज्जिय असंखेजाणि पोग्गलपरियट्टाणि तत्थ परिभमिय पुणो पंचिंदियतसाजत्तएसु उप्पन्जिय पजत्तयदो होदूण उक्स्सदाहं गंतूण उक्कस्सहिदीए पबद्धाए आवलियाए असंखेजदिभागपमाणपोग्गलपरियट्टाणमंतरेणुवलंभादो ।
* एवं णवणोकसायाणं । णवरि जहणणेण एगसमश्रो ।
$ ५४०. णवणोकसायाणमकस्सहिदीए अंतरकालो मिच्छत्तादीणमुक्कस्सहिदिअंतरकालेण सरिसो, किंतु जहणंतरकालो एगसमत्रो । कुदो ? कसाएसु अण्णदरकसायस्स उक्कस्सहिदिमेगसमयं बंधिसूण पुणो विदियसमए सव्वेसिं कसायाणमणुक्कस्स हिदि बंधिय तदियसमए उक्कस्सद्विदि बधिय एवमग्गदो अग्गदो य उक्कस्सहिदिसंतमझे अणुक्कस्सहिदिसंतं कादण बंधावलियादिक्कतकसायहिदीए णोकसाएसु संताए उक्कस्सहिदीए आदी जादा । तदो विदियसमए अणुक्कस्सहिदीए
* उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। ६५३६. शंका-उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात पुद्गल पारवतनप्रमाण क्यों है ।
समाधान-किसी एक जीवने उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध किया अनन्तर उत्कृष्ट स्थितिके बन्धके कारणभूत उत्कृष्ट संक्लेशरूप परिणामोंसे निवृत होकर उसने अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध किया और यह बन्ध अनुत्कृष्ट स्थितिके उत्कृष्ट बन्धकालके अन्तिम समय तक करता रहा। तदनन्तर यह जीव एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न हुआ और वहाँ असंख्यात पुद्गल परिवर्तन काल तक परिभ्रमण करके पुनः पंचेन्द्रिय त्रस पर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ और पर्याप्त होकर उत्कृष्ट संक्लेशरूप परिणामोंको प्राप्त हुआ तब जाकर इसके उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध होता है और इसलिये उत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट अन्तर आवली के असंख्यातवें भागके जितने समय हों उतने पुद्गल परिवर्तनप्रमाण पाया जाता है। .
* इसी प्रकार नौ नोकषायोंका अन्तर है । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर एक समय है ।
६५४०. नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका अन्तरकाल मिथ्यात्वादिककी उत्कृष्ट स्थितिके अन्तरकालके समान है। किन्तु जघन्य अन्तरकाल एक समय है ।
शंका-नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य अन्तर काल एक समय क्यों है ?
समाधान-जिस जीवने सोलह कषायोंमेंसे किसी एक कषायकी उत्कृष्ट स्थितिको एक समय तक बाँधः पुनः दूसरे समयमें सब कषायोंकी अनुत्कृष्ट स्थितिको बाँधा और तीसरे समयमें अन्य कषायकी उत्कृष्ट स्थितिको बाँधा इस प्रकार जो जीव आगे आगे कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिसत्त्वके मध्यंमें कषायों की अनुत्कृष्ट स्थितिसत्त्वको करता है। तदनन्तर जिसके बन्धावलिके . पश्चात् कषायकी उत्कृष्ट स्थिति के नोकषायोंमें संक्रांत होने पर नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org