Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 551
________________ ५३३ . भयधवलासहिदे कसायपाहुडे [विदिविहती ३ अरदि-सोगबंधगद्धा संखे गुणा ३२ । णQसयवेदबंधगद्धा विसे० ४२ । सगसगपडिवक्खबंधगद्धाओ कसायजहण्णहिदीदो २०० सोहिदे सत्तणोकसायाणं जहण्णहिदीओ होति । तासिं पमाणमेदं पुरिस० जहण्णहिदी एसा १५४ । इथि० जहण्ण हिदी १५६ । हस्स-रदिज० हिदी १६८ । अरदि-सोगजहण्णहिदी १८४ । णवूस जह• हिदी १६४ (एसा उच्चारणप्पावहुअस्स संदिदी ।) ८६३. संपहि चिरंतणवक्खाणाइरियाणमप्पाबहु अं वत्तइस्सामो । सव्वत्थोवा सम्मत्त० जह० द्विदिविहत्ती । सम्मामि०-अणंताणु० चउक्क० ज० विहत्ति० संखे० गुणा । पुरिस० ज. विहत्ती असंखेगुणा । इत्थि० जह० विहत्ती विसे० । हस्सरदि० ज० हि० विह. विसे । णवंस० जह० वि० विसे० । अरदि-सोग० ज० वि० विसे । भय-दुगुंछाणं ज० हिदि० विसे । बारसहं कसायाणं ज. हि. वि. विसे । मिच्छत्त ज. हि० वि० विसे । एदस्स अप्पाबहुअस्स साहणहमद्धप्पाबहुअं वत्तइस्सामो । तं जहा-सव्वत्थोवा पुरिस. बंधगद्धा ३। इतिथ० बंधगद्धा संखे० गुणा ६ । हस्स-रदिबंधगद्धा विसे० ११ । णवंस० बंधगद्धा संखे०गुणा २२ । अरदि-सोग बंधगद्धा विसेसा० २३ । अप्पप्पणो पडिवश्वबंधगद्धाओ कसायजहण्णहिदीए २०० गुणा है जिसकी सहनानी १६ है। इससे अरति और शोकका बन्धकाल संख्यातगुणा है जिसकी सहनानी ३२ है। इससे नपुंसकवेदका बन्धकाल विशेष अधिक है इसकी सहनानी ४२ है। ऊपर जो अंक संदृष्टि दी है उसके अनुसार अपने-अपने प्रतिपक्ष बन्धकालोंको कषायकी जघन्य स्थिति २०० मेंसे घटा देनेपर सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितियाँ होती हैं। उनका प्रमाण निम्न प्रकार है-पुरुषवेदकी जघन्य स्थिति १५४ होती है। स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति १५६ होती है । हास्य और रतिकी जघन्य स्थिति १६८ होती है। अरति और शोककी जघन्य स्थिति १८४ होती है । नपुंसकवेदकी जघन्य स्थिति १६४ होती है। यह उच्चारणाचार्य के द्वारा कहे गये अल्पबहुत्वकी संदृष्टि है। ६८६३. अब चिरन्तन व्याख्यानाचार्यके अल्पबहत्वको बतलाते हैं। सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है। इससे सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है। पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है। इससे स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे हास्य और रतिकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है । इससे अरति और शोककी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे बारह कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। अब इस अल्पबहुत्वकी सिद्धि करनेके लिये अल्पबहुत्वको बतलाते हैं, जो इस प्रकार है-पुरुषवेदका बन्धकाल सबसे थोड़ा है जिसकी सहनानी ३ है। इससे स्त्रीवेदका बन्धकाल संख्यातगुणा है जिसकी सहनानी ६ है। इससे हास्य रतिका बम्धकाल विशेष अधिक है जिसकी सहनानी ११ है। इससे नपुंसकवेदका बन्धकाल संख्यातगुणा है जिसकी सहनानी २२ है। इससे अरति और शोकका बन्धकाल विशेष अधिक है जिसकी सहनानी २३ है। इस प्रेकार ऊपर जो अंकसंदृष्टि दी है उसके अनुसार अपन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564