Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 552
________________ मा० २२ | हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिडिदिविहत्तिय अप्पा बहु ५३३ 8. सोहिय सत्तणोकसायजहण्णद्विदीओ उप्पपादेदव्वाओ । पुरिस० जहण्णडिदी १६९ । इत्थि० जह० द्विदी १७५ । हस्स - रदिजहण्णहिदी १७७ । णवुंस० जह० द्विदी १८८ । अरदि-सोग जहण्णहिदी १८६ | $ ८९४. एत्थ दो वि वक्खाणेसु एक्केणेव सच्चेण होदव्वं, ण दोन्हं, विरोहादो । किंतु भय-दुगु वाणमुवरि कसायाणं जह० द्विदिविसेसाहिया त्ति जं भणिदं तण्ण घडदे ; णेरइयविदियसमए जादकसायद्विदिं भयदुगुछासु संकामिय संकामणावलियमेतद्विदीर्ण गालोवायाभावादो । कुदो १ गहिदसरीरणेरइयस्स पढमसमए कसाएहि सह भय-दुगु वाणमंतो कोडा कोडिमेत्तद्विदिबंधुबलं भादो | णेरइयविदियसमयादो हेट्ठा ण भयदुगु छाणं जहणहिदी होदि तत्थ भय- दुगुंलाहि पडिबिजमाणकसायजहणहिदीए अभावादो । तं पि कुदो णच्वदे १ णेरइयविदियसमए चेव जहणसामित्तदाणादो । तम्हा बारसकसाय दुर्गुळाणं जहण्णविदीओ सरिसाओ त्ति जमुच्चारणाए भणिदं तं चैव घेत्तव्वं णिरवज्जत्तादो । जइ पुण असण्णिचरिमसमए कसायजहण्णद्विदीदो भयदुगुंछ जहण्णट्ठिदिविहत्तीए आवलियूणतं लब्भइ तो कसायाणं विसेहियतं घडदे । णवरि एदं जाणिय वत्तव्यं । उच्चारणाहिपाओ पुरा तहा ग लब्भइति अपने प्रतिपक्ष बन्धकालोंको कषायकी जघन्य स्थिति २०० मेंसे घटानेपर सात नोकषायों की जघन्य स्थितियां उत्पन्न करना चाहिये। उनमें से पुरुषवेदकी जघन्य स्थिति १६६ होती है । स्त्रीवेदकी जघन्य स्थिति १७५ होती है । हास्य और रतिकी जघन्य स्थिति १७७ होती है । नपुंसकवेदकी जघन्य स्थिति १८ होती है। अरति और शोककी जघन्य स्थिति १८६ होती है । १८६४. यहां इन दोनों व्याख्यानोंमें से कोई एक व्याख्यान ही सत्य होना चाहिये, दोनों नहीं, क्योंकि दोनोंको सत्य माननेमें विरोध आता है । किन्तु भय और जुगुप्सा के ऊपर कषायों की जवन्य स्थितिको जो विशेष अधिक कहा है वह नहीं बनता है, क्योंकि नारकियों के उत्पन्न होने के दूसरे समय में प्राप्त हुई कषायकी स्थितिके भय और जुगुप्सामें संक्रमित कर देने पर संक्रमणाप्रमाण स्थितियों के गलानेका कोई उपाय नहीं पाया जाता है । इसका कारण यह है कि नारी शरीर ग्रहण करने के पहले समय में कषायोंके साथ भय और जुगुप्साका अन्तःकोड़ाकोड़ी प्रमाण स्थितिबन्ध पाया जाता है । और नारकियोंके दूसरे समयसे नीचे भय और जुगुप्सा प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति नहीं होती है, क्योंकि वहां भय और जुगुप्सारूपसे छीजनेवाली कषायोंकी जघन्य स्थिति नहीं पायी जाती है । शंका - यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? - समाधान क्योंकि नारकियोंके उत्पन्न होनेके दूसरे समयमें ही कषायों का जघन्य स्वामित्व दिया है । अतः बारह कषाय और जुगुप्सा इनकी जघन्य स्थितियां समान होती हैं ऐसा जो उच्चारण में कहा है वही ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि वह कथन निर्दोष है। और यदि असंज्ञियोंके अन्तिम समय में रहने वाली कषायोंकी जधन्य स्थिति से भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थिति में एक वली का कम प्राप्त होता है। तो कषायों की जघन्य स्थिति भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थिति से विशेष अधिक बन जाती है। किन्तु जानकर इसका कथन करना चाहिये । परन्तु उच्चारणाचार्यका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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