Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 559
________________ ५४० जयघवलासहिदे कसायपाहुडे [ द्विदिविहती ३ वि० संखे० ० गुणा । एवं माणकसाईसु, णवरि बारसक० ज० हिदीदो तिण्णिसंज० ज० द्विदी असंखे० गुणा । कोधसंज० ज० द्वि० संखे० गुणा । पुरिस० ज० द्विदी संखे ० गुणा । छण्णोक० ज० हि० संखे ० गुणा । एवं मायक०, णवरि बारसक० जह० द्विदीदो उवरि माया - लोभसंजलणाणं ज० द्विदीओ असंखे० गुणा माणसंज० ज० संखे० गुणा । कोधसंज० ज० वि० संखे० गुणा । पुरिसज० वि० संखे० गुणा । छण्णोक० ज० वि० संखे० गुणा | । 1 $ ६०६. अकसाईसु सव्वत्थोवा बारसक० - नवणोक० ज० हि० विहत्ती । सम्मत्त-मिच्छत्त-सम्मामि० ज० वि० संखे० गुणा । एवं जहाक्खाद० | सुहुमसांपरा ० एवं चेव । णवरि सव्वत्थोवा लोभसंजल० ज० द्वि० विह० । एक्कारसक ००-णवणोक० ज० हि० वि० असंखे० गुणा । $ ६०७ विहंगणाणीणं जोदिसियभंगो। णवरि श्रणंतार० चउक्कस्स बारसकसायभंगो | मणपज्ज० आभिणि० भंगो। णवरि छण्णोकसायाणमुवरि इत्थिवेद० जह० असंखे० गुणा । णवंस० जह० असंखे० गुणा । सामाइयछेदो० मायकसायभंगो । वरि बारसकसायाणमुवरि लोभसंज० ज० वि० असंखे० गुणा | माय० ज० वि० नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । इसी प्रकार मान कषायवाले जावों में जानना चाहिये | किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें बारह कषायोंकी जघन्य स्थितिसे तीन संज्वलनोंकी जघन्य स्थिति असंख्यातगुणी है। इससे क्रोधसंज्ञलनकी जघन्य स्थिति संख्यातगुणी है। इससे पुरुषवेदकी जघन्य स्थिति संख्यातगुणी है । इससे छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । इसी प्रकार मायाकषायवाले जीवोंके जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें बारह कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिसे ऊपर माया और लोभसंज्वलनोंकी जघन्य स्थितियां असंख्यातगुणी हैं। इससे मानसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । इससे क्रोधसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । इससे पुरुषवेदकी जघन्य स्थिति - विभक्ति संख्यातगुणी है । इससे छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । ६०६. कषाय रहित जीवोंमें बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है। इससे सम्यक्त्व मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । इसी प्रकार यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिये । सूक्ष्म सांपरायिकसंयत rain इसी प्रकार जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें लोभसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है इससे ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है । 1 ६ ६०७. विभंगज्ञानियोंके ज्योतिषियों के समान भंग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें अनन्तानुबन्ध चतुष्कका भंग बारह कषायों के समान है । मन:पर्ययज्ञानियोंके मतिज्ञानियोंके समान भंग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके छह नोकषायों के ऊपर स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है। इससे नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंके मायाकषायवाले जीवोंके समान भंग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि बारह कषायों के ऊपर लोभसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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