Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 560
________________ गा० २२ ] संखे० गुणा । उवरि णत्थि विसेसो । १९०८. परिहारसुद्ध० सव्वत्थोवा सम्मत्तज० द्वि० वि० । मिच्छत्त० - सम्मामि० - अनंतापु० चउक्क० ज० वि० संखे० गुणा । बारसक० णवणोक० ज० हि० वि० श्रसंखे० गुणा । एवं संजदासंजद - ते उ-पम्मलेस्साणं । श्रसंजद० सव्त्रत्थोवा सम्मत्त० ज० द्वि० वि० | मिच्छत्त० सम्मामि० श्रणंतागु० चउक्क० ज० द्वि० वि० संखे ० सेस० तिरिक्खोधं । ० गुणा । हिदिविहती उत्तरपयडिट्ठिदिवि हत्तिय अप्पाबहु • ६०६. किण्ह णील लेस्साणं तिरिक्खभंगो । णवरि सम्मत्त ०० - सम्मामिच्छत्तेण सह बत्तव्वं । काउ० तिरिक्खोघं । $ ६१०. खइय० सव्वत्थोवा लोभसंज० इत्थि - णव स० ज० विह० । अकसाय ज० हि० वि० संखे० गुणा । मायासंज० ज० द्वि० वि० असंखे० गुणा । सेसमोधं । वेदगसम्मादिडी० परिहारभंगो । उवसम० सव्वत्थोवा अनंताणु० चउक० ज० हि० वि० । बारसक० - णवणोक० ज० हि० वि० संखे० गुणा । मिच्छत्तसम्मामि० ज० द्विदि० वि० विसेसा० । सासण० सव्वत्थोवा सोलसक० - णवणोक० ज० द्वि० वि० । मिच्छत्त-सम्मत्त सम्मामि० ज० द्वि० वि० विसे० । सम्मामि० सव्वत्योवा सम्मत्त० ज० द्वि० वि० । सम्मामि० ज० द्वि० वि० विसे० । बारसक०इससे मायासंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । ऊपर और कोई विशेषता नहीं है । ६०८ परिहारविशुद्धिसंयतों में सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है । इससे मिध्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । इससे बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है । इस प्रकार संयतासंयत, पीतलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिये । असंयतों में सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है। इससे मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी agrrat जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । शेष कथन सामान्य तिर्यंचों के समान है । ६६०६. कृष्ण और नीललेश्यावाले जीवोंके तियँचों के समान भंग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके सम्यक्त्वका कथन सम्यग्मिथ्यात्वके साथ करना चाहिये । कापोतलेश्यावाले जीवोंके सामान्य तिर्यंचोंके समान जानना चाहिये । Jain Education International ५४१ १०. क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में लोभसंज्वलन, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद की जघन्य स्थितिविभक्ति से थोड़ी है। इससे आठ कषायोंकी जवन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणी है । इससे मायासंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है। शेष कथन ओघ के समान है । वेदकसम्यग्दृष्टियों के परिहारविशुद्धिसंयतों के समान भंग है । उपशमसम्यग्दृष्टियों में अनन्तानुबन्धी agrrat जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है । इससे बारह कषाय और नौ नोकषायों की जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है। इससे मिध्यात्व सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है । सासादन सम्यग्दृष्टियों में सोलह कषाय और नौ नोकषायों की 'जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ा है। इससे मिध्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक हैं । सम्यग्मिध्यादृष्टियों में सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है। इससे सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है । इससे बारह कषाय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 558 559 560 561 562 563 564