Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 553
________________ जयधवलासहिंदे कसायपाहुढे . [द्विदिविहती ३ ६ ८६५. एवं पढमाए पुढवीए । विदियादि जाव छह ति सव्वत्थोवा सम्मत्तसम्मामि०-अणंताणु०-चउक्काणं जह० विहत्ती । बारसक०-णवणोकसायाणं ज० विह० असंखेजगुणा । मिच्छत्तज. वि. विसेसा० । ८६६ सत्तमाए पुढवीए सव्वत्थोवा सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु०चउकाणं ज. हिदिविहत्ती । पुरिस० ज० हिदी असंखे०गुणा । इथि० ज० हिदिविहत्ती , विसेसा० । हस्स-रदिज० वि० विसेसा० । अरदि-सोग० ज० हिदिवि० विसे० । णस० ज० हि० वि० विसेसा० । भय-दुगुंछ, जह• हिदिवि० विसे० । बारसक० ज० वि० विसेसा० । केत्तियमेत्तेण ? एगावलियामेत्तेण । कुदो ? कसायाणं जहण्ण. हिदीए जादाए पुणो आवलियमेत्तमद्धाणमुवरि गंतूण भय-दुगुछाणं जहण्णहिदिसमुप्पत्तीदो। कसायाणमेत्थ जहण्णहिदिसंतसमबंधस्स अंतोमुहुत्तमेत्तकालसंभवादो। जहण्णहिदिसंतादो कसायहिदिबंधे अहिए जादे वि भयदुगुकाणं सगजहण्णहिदिसंतादो हेहा बंधसंभवादो। मिच्छत्तज. वि. विसे । एत्थ अद्धप्पाबहुअं णवणोकसायाणं जहण्णविदिउप्पायणविहाणं , पढमपुढविभंगो; भेदाभावादो(चिरंतणाइरियवक्खाणं पि एत्य अभिप्राय वैसा नहीं है। ८६५. इसी प्रकार पहली पृथिवीमें जानना चाहिये। दूसरी पृथिवीसे लेकर छठी पृथिवी तकके नारकियोंमें सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है। इससे बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है। इससे मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति-विभक्ति विशेष अधिक है । ६८६६. सातवीं पृथिवीमें सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे थोड़ी है। इससे पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणी है। इससे स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे हास्य और रतिकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे अरति और शोककी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है । इससे नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे बारह कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। कितनी अधिक है ? एक आवली अधिक है। शंका-भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिसे बारह कषायोंकी जघन्य स्थिति एक श्रावलि अधिक क्यों है ? समाधान-क्योंकि कषायोंकी जघन्य स्थिति हो जानेपर तदनन्तर एक प्रावलिप्रमाण काल आगे जाकर भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थित उत्पन्न होती है। इसका कारण यह है कि यहां पर अन्तर्मुहूर्त कालतक कषायोंकी सत्तामें स्थित जघन्य स्थितिके समान कषायोंका बन्ध संभव है। और जघन्य स्थिति सत्त्वसे कषायका स्थितिबन्ध अधिक होनेपर भी भय और जुगुप्साका अपने जघन्य स्थितिसत्त्वसे नीचे बन्ध संभव है। बारह कषायोंकी जघन्य स्थितिसे मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। यहां पर काल सम्बन्धी अल्पबहुत्वको और नौ नाकषायोंकी जघन्य स्थितिके उत्पन्न करनेकी विधिको पहली पृथिवीके समान जानना चाहिये, १. ता प्रती 'च [ समाणं ] पदम' इति पाठः । २ ता० श्रा० प्रत्योः '-मंगभेदा-' इति पार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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