Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 521
________________ ५०३ जयघवत्तासहिदे कसायपाहुडे [ द्विदिविहत्ती ३ पलिदो ० असंखे ० भागन्भहिया । सम्मत्त - सम्मामि० अणतारणु० चउक्क० किं ज० अज० १ णि० अज० असंखे० गुणा । सत्तणोक० किं ज० अज० १ णियमा अज० असंखे ० भागव्भहिया । एवं बारसकसायाणं, णवरि भय-दुगु छा० तं तु समयुत्तरमादिं० जाव आवलियम्भहिया । सम्मत्त० जह० विहत्ति० मिच्छत्त- बारसक० णवणोक० किं ज० अज० १ णि० अज० संखे० गुणा । सम्मामि० किं ज० अ० १ णियमा अज० असंखे० गुणा । अनंताणु० चउक्क० विदियपुढविभंगो । सम्मामि० एवं चेत्र, णवरि सम्मत्तं णत्थि । अणंताणु० कोध० ज० विहत्ति० मिच्छत्त- बारसक० णवणोक० किं० ज० अज० ! णि० अज० विद्वाणपदिदा असंखेज्जभागन्भहिया संखे ० भागब्भहिया वा । सम्मत्त सम्मामि मिच्छत्तभंगो । तिण्णि क० किं ज० अज० १ णि० ज० । एवं हिं कसायाणं । इत्थि० ज० विहत्ति० मिच्छत्त - बारसक० - ग्रहणोक० किं ज० णियमा ० संखे० गुणा । सम्मत्त० सम्मामि० श्रताणु ० चउक्क० किं ज० णियमा ज० असंखे० गुणा । एवं पुरिस० । ण स० ज० विहत्ति० मिच्छत्त ज० १ ज० १ I अजघन्य भी । उनमें से अजघन्य स्थिति अपनी जघन्य स्थितिकी अपेक्षा एक समय अधिक से लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग तक अधिक होती है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है । जो अपनी जघन्य स्थिति से असंख्यातगुणी अधिक होती है । सात नोकषायों की स्थिति क्या जघन्य होती है या जघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थिति से असंख्यातवें भाग अधिक होती है । इसी प्रकार बारह कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके भय और जुगुप्साकी स्थिति जघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थिति से एक समय अधिकसे लेकर एक अवलितक अधिक होती है । सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थिति संख्यातगुणी होती है । सम्यग्मथ्यात्वकी स्थिति क्या जघन्य हाती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है । जो अपनी जघन्य स्थिति से असंख्यातगुणी होती है । अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग दूसरी पृथिवी के समान है । सम्यग्मिथ्यात्यकी जवन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके इसी प्रकार सन्निकर्ष जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके सम्यक्त्व प्रकृति नहीं है । अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिध्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायों की स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थिति से असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातवें भाग अधिक इस प्रकार दो स्थान पतितहोती है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग मिथ्यात्व के समान है । अनन्तानुबन्धीमान आदि तीन कषायों की स्थिति क्या जघन्य होती हैं या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है । इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीमान आदि तीन कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय, और आठ ataurant स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थिति से संख्यातगुणी होती है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो अपनी जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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