Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 522
________________ गा० २२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिविहात्तयसरिणयासो ५०३ बारसक०-इत्थि-पुरिस०-अरदि-सोग-भय-दुगुंछ० किं ज० अज० ? णियमा अज० संखे०गणा । सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु०चउक्क० किं ज० अज० ? णियमा अज० असंखे गुणा । हस्स-रदि० किं ज० अज० १ णि० अज० वेहाणपदिदा असंखे० भागभहिया संखेज्जगुणा वा ? हस्स जह० विहत्ति० मिच्छत्त०-बारसक०-णबुंस०अरदि-सोग-भय-दुगुंछ० किं ज० अज० ? णि० अज० संखेजगुणा। सम्मत्तसम्मामि०-अणंताणु०चउक्क० णवंस० भंगो। इत्थि-पुरिस० किं ज. अज० ? णिय० अज० वेहाणपदिदा असंखे०भागब्भहिया संखे०गुणा वा । रदि० किं ज. अज० ? णियमा जहण्णा । एवं रदि० । अरदि० जह० विहत्ति० मिच्छत्त-बारसक०-हस्स-रदिभय-दुगुंछ० किं ज० अज• ? णियमा अज० संखेगुणा । सम्मत्त०-सम्मामि०अणंताणु०चउक्क० रदिभंगो। तिण्णि वेद० किं ज. अज० ? णिय अन० वेहाणपदिदा असंखे० भागब्भहिया संखे० गुणा वा । सोग० किं ज० अज० ? णियमा जहण्णा । एवं सोग० । भय ज. विहत्ति० मिच्छत्त०-बारसक० किं ज०१ अज। तंतु स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है । इसी प्रकार पुरुषवेदकी जघन्य स्थिति विभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ण जानना चाहिये । नपुसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। हास्य और रतिकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है। जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है। हास्यकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय, नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है । जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग नपुंसकवेदके समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है। रतिकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार रतिकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सन्निकर्ण जानना चाहिये । अरतिकी जघन्य स्थितिविभक्तिके . धारक जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय, हास्य, रति, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होतीहै । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग रतिके समान है। तीनों वेदोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है। जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है । शोककी स्थिति क्या जघन्य होती है या अनघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार शोककी जघन्यस्थितिविभक्तवाजे जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये। भयकी जघन्य स्थिति विभक्तिवाले जीव के मिथ्यात्व और बारह कषायकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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