Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा ०२२ ] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिविहत्तियसरिणयासो .. ५०६ भागब्भ० संखे०गुणा वा । सोग० किं ज० अज० ? णि० जहण्णा । एवं सो० । शवरि पंचिं० तिरि जोणिणीसु सम्मत्त० सम्मामिच्छत्तभंगो ।
९८५२. पंचिं तिरि० अपज्ज. मिच्छत्त ज. विहत्ति० सम्मत्त-सम्मामि०बारसक०-णवणोक० जोणिणीभंगो। अणंताणु० चउक्क० किं ज०. अज० १ जहण्णा अजहण्णा वा । जहण्णादो अजहण्णा समयुत्तरमादि कादण जाव पलिदो० असंखे०भागमहिया । सम्मत्त० ज० विहत्ति० मिच्छत्त सोलसक०-णवणोक० किं ज० अज० ? जहण्णा अजहण्णा वा। जहण्णादो अज० तिहाणपदिदा असंखे भागब्भ० संखे० भागब्भ० संखे०गुणा वा। सम्मामि० णि अज० असंखे गुणा । एवं सम्मामि०, णवरि सम्म णस्थि । सोलसक० मिच्छत्तभंगो । भय० जह० मिच्छत्त-सोलसक०-दुगुंछ० किं ज० [अज.] ? अज०, तं तु समयुत्तरमादि कादूण जाव पलिदो० असंखे० . भागब्भ० । सेसं मिच्छत्तभंगो। एवं दुगुकाए। सत्तणोक० जोणिणिभंगो । णवरि अणंताणु० चउक्क० णि० संखे० गुणा । एवं मणुसअपज्ज-पंचि०अपज्ज०-तसअपजो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है । शोककी स्थिति क्या जयन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है । इसी प्रकार शाककी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये। किन्तु इतना विशेषता है कि पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमति जावोंम सम्यक्त्वका भंग सम्य ग्मिथ्यात्वके समान है।
८५२ पंचेन्द्रिय तियेच लब्ध्यपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सम्यक्त्व, सम्याग्मथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंका भंग योनिमति तिर्यंचोंके समान है। अनन्तानुबन्धा चतुष्कको स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? जघन्य भी होती है और अजघन्य भी। उनमंसे अजघन्य स्थिति अपनी जघन्य स्थितिकी अपेक्षा एक समय अधिकसे लेकर पल्योपमके असख्यातवें भाग अधिक तक होती है । सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नो नाकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? जघन्य भी होती है और अजघन्य भी। उनमेंसे अजघन्य स्थिति अपनी जघन्य स्थितिकी अपेक्षा असंख्यातवें भाग अधिक, संख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार तीन स्थान पतित होती है। सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति नियमसे अजघन्य हाती है जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी हाती है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि इसक सम्यक्त्व प्रकृति नहीं है । सोलह कषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सब प्रकृतियोंका सन्निकर्ष मिथ्यात्वके समान है। भयकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व, सोलह कषाय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है फिर भा वह अपनी जघन्य स्थितिकी अपेक्षा एक समय अधिकसे लेकर पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग अधिक तक होती है। शेष प्रकृतियोंका भंग मिथ्यात्वके समान है। इसी प्रकार जुगुप्साकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये। सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके भंग योनिमती तियचोंके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि इसके अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी स्थिति नियमसे संख्यातगणी होती है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तक, पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक और बस अपर्याप्तक
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