Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 527
________________ ५०० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ विदिविहत्ती ३ असंखे०गुणा । इत्थि० जह• विहत्ति० मिच्छत्त-बारसक०-अट्ठणोक० किं ज० अज० १ . णियमा अज० संखे० गुणा। सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु०चउक्क० मिच्छत्तभंगो । एवं पुरिस० । णवंस० ज० विहत्ति० मिच्छत्त-बारसक-इत्थि-पुरिस०-अरदि-सोगभय-दुगुछ० किं ज़० अज०? णि. अज० संख० गुणा । सम्मत्त-सम्मामि० अणंताणु०चउक्क० मिच्छत्तभंगो । हस्स-रदि० किं ज० अज• ? णियमा अज० वेढाणपदिदा असंख०भागब्भहिया संखे० गुणा । हस्स० जह० विहत्ति० मिच्छत्त-बारसक०अरदि-सोग-भय-दुगुछ० किं ज० अज० १ णियमा अज० संवे०गुणा । एवं णवुस० । सम्मत्त-सम्मामि०-अर्णताणु० चउक० मिच्छत्तभंगो । इत्थि-पुरिस० किं ज० अज? णियमा अज• वेडाणपदिदा असंखे०भागब्भ० संखे गुणा वा । रदि किं ज० अज० ? णि० जहण्णा । एवं रदीए । अरदि० ज० विहत्ति० मिच्छत्त-बारसक०-हस्स-रदि०भय-दुगुंछ० किं ज० अज० १ णि. अज संखे०गुणा । सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु०. चउक्क. हस्सभंगो । तिण्णिवेद० किंज अज० १ णि० अज० वेहाणपदिदा असंखे० अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार तीन स्थान पतित होती है । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियम से अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय और आठ नोकषायों की स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग मिथ्यात्वके समान है। इसी प्रकार पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यात. गुणी होती है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग मिथ्यात्वके समान है। हास्य और रतिकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो असंख्यातवें भाग अधिक और संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है। हास्यकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। इसी प्रकार नपुंसकवेदका भंग जानना चाहिये । सम्यक्त्व, सम्यांग्मथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग मिथ्यात्वके समान है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है । रतिकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है । इसी प्रकार रतिकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सन्निकर्ण जानना चाहिये। अरतिकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीके मिथ्यात्व, बारह कषाय, हास्य, रति, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग हास्यके समान है। तीनों वेदोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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