Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 525
________________ ५०६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ हिदिविहती ३ बारसक० - इत्थि - पुरिस० - अरदि - सोग - भय - दुगुंछ० किं ज० अज० १ णि० ज० संखे० गुणा । सम्मत्त- सम्मामि ० - अनंताणु ० चडवक० इत्थि० भंगो | हस्स-रदि० किं ज० अज० [ नियमा अज० ] वेद्वाणपदिदा असंखे ० भागन्भहिया संखे० गुणा वा । हस्स ज० विहत्ति० मिच्छत्त- बारसक० णवुंस० - अरदि-सोग-भय-दुगुंछ० किं ज० अज० १ णि० अज० संखे० गुणा । सम्मत्त सम्मामि० अणंता ० चउक्क० णव सभंगो | इस्थि - पुरिस० किं ज० अज ० १ णि० अज० वेद्वाणपदिदा असंखे० भागव्भहिया संखे ० गुणा वा । रदि० किं ज० अज० १ णि० जहण्णा । एवं रदीए । अरदि० जह० विहत्ति० मिच्छत्त- बारसक० - हस्स- रदि-भय-दुगु छा० किं ज० अज० १ णि० अज० संखे ०२ ० गुणा । सम्मत्त - सम्मामि० श्रणंताणु ० चउक्क० हस्सभंगो । तिष्णि वेद० किं ज० अज० १ णि० ज० वेडाणपदिदा असंखे० भागन्भहिया संखे० गुणा वा । सोग० किं ज० अज • ? णि० जहण्णा । एवं सोग० । -- १८५१. पंचिंदियतिरिक्ख ० - पंचिं० तिरि० पज्ज० - पंचिं० तिरि० जोणिणी • मिच्छत्त० जह० विहत्ति० वारसक० -भय-दुगु छा० किं ज० ज० १ जहण्णा अजहण्णा वा । पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थिति से संख्यातगुणी होती है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग स्त्रीवेदके समान है । हास्य और रतिकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है । हास्यकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय, नपुंसकवेद अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या जघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो अपनी जघन्य स्थिति से संख्यातगुणी होती है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग नपुंसकवेदके समान है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित होती है । रतिकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार रतिकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । अरतिकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके मिध्यात्व, बारहकषाय, हास्य, रति, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थिति से संख्यातगुणी होती है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग हास्यके समान है। तीनों वेदोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो अपनी जघन्य स्थिति से असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दो स्थान पतित है । शोककी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है । इसी प्रकार शोककी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । १८५१. पंचेन्द्रियतिर्यंच, पंचेन्द्रियतिर्यंच पर्याप्त और पंचेन्द्रियतिर्यंच योनिमती जीवों में मिथ्यात्व की जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके बारह कषाय भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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