Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 531
________________ ५१२ [ हिदिविहत्ती ३ जयधवलास हिदे कसायपाहुडें किं ज० अज० ? णि० अज० खे० गुणा । सम्मत्त० किं ज० अज ? णि० अज० संखे० गुणा । तिष्णिक० किं ज० ज० ? णि० जहण्णा । एवं तिन्हं कसाया। अपच्चक्खाण-कोधज० एक्कारसक० - णवणोक० [ कि० जह० ज० १] णि० जहण्णा । एबमेक्कारसक० णवणोकसायाणं । C ६८५५, इंदियाणुवादेण एईदिएसु मिच्छत्तजह० विहत्ति० सोलसक० -भय- दुर्गुळ किं० ज० अज० ? जहण्णा अजहण्णा वा । जहण्णादो अजहण्णा समयुत्तरमादिं काढूण जाव पलिदो ० असंखे० भागेणव्भहिया । सम्मत्त सम्मामि० सिया अस्थि सिया णत्थि । जदि अस्थि किं ज० अज० ? जहण्णा अजहण्णा वा । जहण्णादो अज० तिद्वाणपदिदा संखे० भागन्भहिया संखे० गुणा वा असंखे० गुणा वा । सत्तणोक० किं ज० अज० ? णि० अज० असंखे • भागन्भहिया । एवं सोलसकसाय-भय-दुगुंछाणं । णवरि भय जह० दुर्गुछ० णियमा जहण्णा । एवं दुगुंछ० । भय-दुगुंछाणं जहणहिदीए संतीए कथं सोलसकसायाणमसंखे० भागन्भहियत्तं ? ण, सोलसकसायाणं जहणहिदीदो अब्भहिर्याइदिमिथ्यात्व, सम्यग्मध्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायों की स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थिति से संख्यातगुणी होती है । सम्यक्त्वकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है । अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायों की स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है । इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायों की जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । श्रप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके अप्रत्याख्यानावरणमान आदि ग्यारह कषाय और नौ नोकषायों की स्थिति नियमसे जघन्य होती है । इसी प्रकार अप्रत्याख्यानावरण मान आदि ग्यारह 'कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थिति विभक्ति के धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । ८५. इन्द्रिय मार्गणा के अनुवादसे एकेन्द्रियों में मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? जघन्य भी होती है और अजवन्य भी । उनमें से अजघन्य स्थिति अपनी जघन्य स्थितिकी अपेक्षा एक समय अधिक से लेकर पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तक होती है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व कदाचित् है और कदाचित् नहीं । यदि है तो उसकी स्थिति क्या जघन्य होती ह या अजघन्य ? जघन्य भी होती है और अजघन्य भी । उनमें से अजघन्य स्थिति अपनी जघन्य स्थिति से संख्यातवें भाग अधिक संख्यातगुणी अधिक या असंख्यातगुणी अधिक इस प्रकार तीन स्थानपतित होती । सात नोकषायों की स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे 1 जघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थिति से असंख्यातवें भाग अधिक होती है । इसी प्रकार सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये | किन्तु इतनी विशेषता है कि भयकी जवन्य स्थितिवाले जीवके जुगुप्साकी स्थिति नियमसे जघन्य होती हैं । इसी प्रकार जुगुप्साकी जवन्य स्थितिवाले जीवके भयकी स्थिति नियमसे जन्य होती है। शंका- भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिके रहते हुए सोलह कषायों की स्थिति असंख्यातवें भाग अधिक कैसे होती है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564