Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 530
________________ गा० २२ ] , हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिविहत्तियसरिणयासो . ५११ अन ? णि अज० संखे०गुणा । अणंताणु चउक्क किं ज० अज० १ णि० अज० असं गुणा । अणंताणु० कोधज० मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० किं ज. अज.? णि अज० संखे०गुणा । सम्मत्तसम्मामि० किं ज० अज़० ? णि अज० असंखे० गुणा । तिण्णिक. किं ज. अज० १ णि० जहण्णा । एवं तिण्हं कसायाणं । अपच्चखाणकोधज विहत्ति० एक्कारसक-णवणोक० किं ज. अज० १ णि० जहण्णा । एवमेकारसक०-णवणोकसायाणं ।। ६.८५४. अणुद्दिसादि जाव सव्वदृसिद्धि त्ति मिच्छत्त जह० विहत्ति० बारसक० णवणोक. किं० ज० अज०१ णि० अज० संखे०गुणा। सम्मत्त किं ज० अज. ? णि. अज. असंखे गुणा। सम्मामि० किं ज. अज० ? णि० जहण्णा । एवं सम्मामि० । सम्मत्त० जह० विहत्ती. बारसक०-णवणोक० किं ज० अज० ? णि० अज. संखेगुणा । अथवा संखे भागब्भ० संखे गणा त्ति वेहाणपदिदा । एत्थ कारणं पुव्वं व वत्तव्यं । अणंताणु०कोध० ज०विह० मिच्छत्त-सम्मामि०-बारसक०-णवणोक० मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है । अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। सम्यक्त्व और सम्यरिमथ्यात्वकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है। अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है । इसी प्रकार अनन्तानुवन्धी मान आदि तीन कषायोंकी जघन्य स्थितिवभिक्तिवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके अप्रत्याख्यानावरण मान आदि ग्यारह कषाय, और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जयन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार अप्रत्याख्यानावरण मान आदि ग्यारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सन्निकर्ण जानना चाहिये। १८५४. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी होती है। सम्यक्त्वकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य होती है, जो अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी होती है । सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? नियमसे जघन्य होती है। इसी प्रकार सम्यग्मिध्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या जघन्य है या अजघन्य ? नियमसे अजघन्य है जो अपनी जघन्य स्थितिसे संख्यातगुणी है। अथवा संख्यातवेंभाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इस प्रकार दा स्थान पतित है। यहाँ पर कारण पहलेके समान कहना चाहिये । अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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