Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
३६२
जयघवलासहिदे कसायपाहुडे
[ द्विहिती ३
णवणोक ० ६० जह० के० १ संखेज्जा । अज० के० १ असंखेज्जा | सम्मत्त० एवं चेव । सम्मामि०-अणंताणु॰ चउक्क० ज० अज० के० ? असंखे० । णवरि अणुद्दिसादि जाव अवराइदत्ति सम्मामि० जह० संखेज्जा । सव्वद्द े • सव्वपयडि० ज० ज ० के ० १ संखेज्जा । एवमाहार- श्राहारमिस्स ० - अवगद्० - अकसा०-मणपज्ज ० -संजद ० - सामाइयछेदो०- परिहार० - सुहुम ० - जहाक्खादसंजदे ति ।
९ ६१२. एइंदिय० मिच्छत्त - सोलसक० - णवणोक० ज० ज० के० १ अनंता । सम्मत्त सम्मामि० ज० अज० के० १ असंखेज्जा । एवं वणष्फदि णिगोद० ।
९ ६१३. ओरालिय० मिस्स० तिरिक्खोघं । णवरि अणतारणु० चउक० ज० अज० के० १ अनंता । वेउव्वियमिस्स • सोहम्मभंगो । णवरि अनंता ०४ जह० संखेज्जा । कम्मइ० एइंदियभंगो | णवरि सम्मत्त० ज० के० ? संखेज्जा । अज० के० ९ संखेज्जा । $६१४. पंचिंदिय-पंचिं० पज्ज० तस-तसपज्ज० - पंचमण० - पंचवचि० - वेडव्चिय ० इत्थि० - पुरि० - आभिणि० - सुद० - ओहि ० विहंग० संजदासंजद ० - चक्खु ० हिंदंस ० तेउ०पम्म० सुक० - सम्मा ०- वेदय० मणुसगइभंगो। णवरि विहंग० वज्जेसु अणता० चउक्क ०
मिध्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । सम्यक्त्वकी अपेक्षा इसी प्रकार जानना चाहिये । सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । किन्तु इतनी विशेषता है कि अनुदिशसे लेकर अपराजित कल्प तकके देवों में सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यात हैं । सर्वार्थसिद्धि देवों में सब प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसी प्रकार आहारककाययोगी, आहारक मिश्रकाययोगी, अपगतवेदवाले, अकषायी, मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापना संयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिये ।
$ ६१२. एकेन्द्रियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायों की जघन्य और अजघन्य |स्थतिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंके जानना चाहिये ।
$ ६१३. औदारिकमिश्रकाययोगियों में सामान्य तिर्यंचों के समान भंग है । किन्तु इतनी ' विशेषता है कि इनमें अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों में सौधर्मके समान भंग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि अनुबन्धचतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव संख्यात हैं । कार्मण काययोगियों में एकेन्द्रियोंके समान भंग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । ९ ६१४. पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियपर्याप्तक, त्रस, त्रसपर्याप्तक, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, वैक्रियककाययोगी' स्त्रीवेदवाले, पुरुषवेदवाले, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, विभंगज्ञानी, संयतासंयत, चतुदर्शनवाले, अवधिदर्शनवाले, पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले, शुक्लेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवों में मनुष्यगति के समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि विभंग
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org