Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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- जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[द्विदिषिहत्ती ३ ७३१. बारसमभंगे तिसंजोगम्मि विदिए भण्णमाणे मिच्छत्तु क्कस्सहिदि समयणादिकमेण बंधाविय पडिहग्ग-मिच्छत्तद्धामो समयुत्तर-दुसमयुत्तरादिकमेण वड्डाविय सम्मत्तकालमवहिदं करिय मिच्छत्त क्कस्सहिदिं पुव्वं व जाणिदण ओदारेदव्वं जाव सम्मत्तचरिमवियप्पो त्ति । एवमोदारिदे बारसमपरूवणा समत्ता होदि १२ ।
६ ७३२. संपहि तेरसमपरूवणे भण्णमाणे एक्को वेदगसम्मादिही मिच्छत्तहिदि समयूण-दुसमयूणादिकमेण बंधाविय सम्मत्त-मिच्छत्तद्धाओ परिवाडीए समयुत्तरादिकमेण वडाविय पडिहग्गद्धमवहिदं करिय मिच्छत्त क्कस्सहिदिं बंधाविय ओदारेदव्वं जाव सम्मत्तस्स एगा हिदी दुसमयकाला चेहिदा त्ति । एवमोदारिदे तेरसमवियप्पो समत्तो होदि १३।।
७३३, संपहि चोदसमवियप्पे भण्णमाणे मिच्छत्तु कस्सहिदि बंधाविय पडिहग्ग-सम्मत्त मिच्छत्तद्धाश्रो समयुत्तरादिकमेण परिवाडीए वडाविय मिच्छत्तकस्सहिदि बंधाविय ओदारेदव्वं जाव सम्मत्तस्स एगा द्विदी दुसमयकाला चेहिदा ति । एवमोदारिदे चोदसवियप्पो समत्तो होदि १४ ।
६७३१ अब बारहवें भंगके और तीन संयोगीमें दूसरे भंगके कथन करने पर मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका एक समय कम, दो समय कम इत्यादि क्रमसे बन्ध करावे, और मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके कालको तथा मिथ्यात्वके कालको एक समय अधिक, दो समय अधिक इत्यादि क्रमसे बढ़ावे तथा सम्यक्त्वके कालको अवस्थित करके और मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कराके सम्यक्त्वकी स्थितिके अन्तिम विकल्पके उत्पन्न होने तक पहलेके समान जानकर उसकी स्थितिको घटाना चाहिये । इस प्रकार सम्यक्त्वकी स्थितिके घटाने पर बारहवीं प्ररूपणा समाप्त होती है।
६७३२. अब तेरहवीं प्ररूपणाके कथन करने पर एक वेदकसम्यग्दृष्टि जीव मिथ्यात्वमें जाकर मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका एक समय कम, दो समय कम इत्यादि क्रमसे बन्ध करे और सम्यक्त्व तथा मिथ्यात्वके कालको उत्तरोत्तर एक समय, दो समय इत्यादि क्रमसे बढ़ावे और मथ्यात्वसे निवृत्त होनेके कालको अवस्थित करके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करे। इस प्रकार पूर्वोक्त विधिसे सम्यक्त्वकी दो समय कालप्रमाण स्थितिके प्राप्त होने तक सन्यक्त्वकी स्थितिको घटावे । इस प्रकार सम्यक्त्वकी स्थितिके घटाने पर तेरहवां विकल्प समाप्त होता है।
६७३३. अब चौदहवें विकल्पके कथन करने पर मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करावे और मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके कालको तथा सम्यक्त्व और मिथ्यात्वके कालको उत्तरोत्तर एक समय, दो समय इत्यादि क्रमसे बढ़ता जावे तथा मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कराके सम्यक्त्वकी दो समय काल प्रमाण जघन्य स्थितिके प्राप्त होने तक उसकी स्थितिको घटाता जावे । इस प्रकार सम्यक्त्वकी स्थितिके घटाने पर चौदहवाँ विकल्प समाप्त होता है।
विशेषार्थ—चारके तीन संयोगी भंग कुल चार होते हैं। ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं और चौदवीं प्ररूपणामें ये ही चार भंग बतला कर सम्यक्त्वकी स्थिति उत्तरोत्तर न्यून प्राप्त की गई है। कहाँ किनके संयोगसे स्थिति कम प्राप्त की गई है इसका खुलासा मूलमें किया ही है, अतः यहाँ उसे पुनः नहीं दुहराया गया है ।
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