Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 481
________________ ४६२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिनिहत्ती ३ वा उक्कस्सहिदि बंधिय पडिहग्गपढमसमए इत्थिवेदस्स उक्कस्सहिदिविहत्ती होदि । तक्काले सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमणुक्कस्सहिदी; सगुक्कस्सहिदि पेक्खिदूण अंतोमुहुत्तणत्तादो। सेसं जहा मिच्छत्तु कस्सहिदीए णिरुद्धाए सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सण्णियासो कदो तहा इत्थिवेदुक्कस्सहिदीए णिरुद्धाए वि तासिं पयडीणं हिदीए सण्णियासो कायव्यो; विसेसाभावादो । ॐ णवरि चरिमुव्वेल्लणकंडयचरिमफालीए ऊणा त्ति । ७६६. अंतोमुहुत्तूणुक्कस्सद्विदिप्पहुडि जावेगा हिदि त्ति सव्वहिदीहि सह सण्णियासे पुव्वमुत्तण संपत्ते तस्सापवादहमेदं मुत्तमागदं । चरिमुव्वेल्लणकंडयम्मि उक्कीरणद्धामेत्ताओ फालीओ होंति । एत्तियमेत्ताओ फालीओ होति त्ति कुदो णव्वदे ? चरिमुव्वेल्लणकंड यचरिमफालीए ऊणा त्ति ए दम्हादो सुत्तादो । ण च एगसमएण हिदिखंडए पदंते संते 'चरिमफालीए ऊणा' ति णिद्देसो जुज्जदे; एक्कम्मि चारिमाचरिमववहाराभावादो । होदु णाम फालीणं बहुत्तसिद्धी, ताओ उकीरणद्धामेत्ताओ त्ति कथं णव्वदे ! हिदिकंडयणिवदणकालस्स उक्कीरणद्धाववएसण्णहाणुववत्तीदो । ण च की एक समय तक या एक आवलि काल तक उत्कृष्ट स्थितिको बाँधता है उसके प्रतिभग्न होनेके प्रथम समयमें स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है। तथा उस समय सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट स्थिति होती है। क्योंकि वह अपनी उत्कृष्ट स्थितिको देखते हुए अन्तर्मुहूत कम होती है। आगे जिस प्रकार मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको रोक कर सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी शेष स्थितियोंका सन्निकर्ष किया है उसी प्रकार स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिको रोक कर भी उन प्रकृतियोंकी स्थितियोंका सन्निकर्ष करना चाहिये, क्योंकि दानोंमें कोई विशेषता नहीं है । 8 किन्तु इतनी विशेषता है कि वह अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्ति अन्तिम उवलना काण्डककी अन्तिम फालिसे न्यून होती है। ६ ७६६. अन्तर्मुहूर्त कम उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर एक स्थितितक अनुत्कृष्ट स्थिति विभक्ति होती है । इस प्रकार पूर्व सूत्र वचनसे सब स्थितियों के साथ सन्निकर्षके प्राप्त होने पर उसके अपवादके लिये यह सूत्र आया है । अन्तिम उद्वेलनाकाण्डकमें उत्कीरणा काल प्रमाण फालियां होती हैं। शंका-इतनी फालियां होती हैं यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-'चरिमुव्वेल्लणकंडयचरिमफालीए ऊणा' इस सूत्र वचनसे जाना जाता है। यदि एक समयके द्वारा स्थितिकाण्डकका पतन स्वीकार किया जाय तो 'चरिमफालीए ऊणा' यह निर्देश नहीं बन सकता है, क्योंकि एकमें अन्तिम और अनन्तिम इस प्रकारका व्यवहार नहीं बन सकता है। शंका-फालियां बहुत होती हैं यह भले ही सिद्ध हो जाओ परन्तु वे उत्कीरणकाल प्रमाण होती हैं यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-यदि फालियां उत्कीरण काल प्रमाण न मानी जायं तो स्थितिकाण्डकके पतन होनेके कालकी उत्कीरण काल यह संज्ञा नहीं बन सकती है। इससे जाना जाता है कि फालियां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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