Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[द्विदिविहत्ती ३ एवं जाव पडिहग्गावलियमेत्तकालो उवरि गच्छदि ताव अरदि-सोगुक्कस्सहिदी प्रावलियुणा होदि । पुणो समयाहियावलियपढमममए कसायाणमावलिऊणुक्कस्सहिदि बंधिय पुणो आवलियमेत्तकालं उक्कस्सहिदिं बंधिय पडिहग्गपढमसमए हस्स-रदीसु वंधमागदास अरदि-सोगुक्कस्सहिदी समयाहियावलियाए ऊणा होदि । पुणो जाव आवलियमेत्तकालो गच्छदि ताव अरदि-सोगुक्कर हिदी दोहि श्रावलियाहि ऊणा होदि । एवं जाणिदण अोदारेयव्यं जाव आवलियम्भहियसमऊणाबाहाकंडएणूणवीसं सागरोवमकोडाकोडिमेत्तकम्महिदी चेहिदा त्ति ।
* भय दुगु'छाणं हिदीविहत्ती किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ? $ ८१०. सुगमं ?
यिमा उक्कस्सा। ८११. धुवबंधित्तादो। * एवमरदि सोग-भय दुगुछाणं पि ।
६८१२. जहा णवसयवदस्स सनकम्मेहि सह सण्णियासो कदो तहा अरदिसोग-भय-दुगुलाणं पि कायव्वं ।
नहीं हो रहा है। इस प्रकार एक आवलिप्रमाण प्रतिभग्नकालके आगे जाने तक अरति और शोककी उत्कृष्ट स्थिति एक श्रावलिप्रमाण कम हो जाती है। पुनः एक समय अधिक आवलिके प्रथम समयमें कपायोंकी एक वलि कम उत्कृष्ट स्थितिको बाँधकर पुनः एक प्रावलि काल तक कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिको बाँधकर प्रतिभग्न कालके प्रथम समयमें हास्य और रतिके बन्धको प्राप्त होनेपर अरति और शोककी उत्कृष्ट स्थिति एक समय अधिक एक आवलि कम होती है। पुनः एक प्रावलि प्रेमाण कालके जाने तक अरति और शोककी उत्कृष्ट स्थिति दो आवलि काल प्रमाण कम होती है। इस प्रकार एक समय कम आबाधाकाण्डकमें एक आवलि कालके जोड़ने पर जितना प्रमाण हो उतने कालसे न्यून बीस कोड़ाकोड़ा सागर प्रमाण कमस्थितिके प्राप्त होने तक अरति और शोककी स्थितिको घटाते जाना चाहिये ।
नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट स्थितिके समय भय और जुगुप्साकी स्थितिविभक्ति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ?
८१०. यह सूत्र सुगम है।
नियमसे उत्कृष्ट होती है। ९८५१. क्योंकि ये दोनों प्रकृतियाँ ध्रुवबन्धिनी हैं।
@ इसी प्रकार अरति, शोक, भय और जुगुप्साका भी सब कर्मों के साथ सन्निकर्ष कहना चाहिये।
८१२. जिस प्रकार नपुंसकवेदका सब कर्मों के साथ सन्निकर्ष किया उसी प्रकार अरति, शोक, भय और जुगुप्साका भी करना चाहिये ।
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