Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 512
________________ गा० २२ ] . हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिद्विदिविहत्तियसरिणयासो ४४३ अणुक्क० ? उकस्सा अणुक्कस्सा वा । उक्कस्सादो अणुक्कस्सा समयणमादि कादण जाव पलिदो० असंखे०भागेणणा । एवं सम्मत्त-सम्मामि० । अणंताणु०कोधुक्कस्स०विहत्तियस्स सम्मत्त-सम्मामि० किमुक्क० अणुक्क ? उक्कस्सा अणुक्कस्सा वा । उक्कस्सादो अणुक्कस्सा समयूणमादि कादूण जाव पलिदो० असंखे० भागेणूणा । पण्णारसक०णवणोक० किमुक्क० अणक ? णियमा उक्क० । एवं पण्णारसक०-णवणोकसायाणं । एवोमहिदंस०-सम्मा०-वेदय० त्तिः । ८३० मुक्कलेस्सिय० पंचिं-तिरि०अपज्जत्तभंगो । अभव० सम्मत्त-सम्मामि० वज० ओघं । सम्मामि० मिच्छत्तु ककस्सहिदिविहत्तियस्स सम्मत्त-सम्मामि० किमुक्क० अणुक्क० १ गियमा अणुक्क० । अंतोमुहुत्तणादि कादण जाव सागरोवमपुधनं । सोलसक०णवणोक० किमुक्क० अणुक्क० ? आभिणि भगो। एवं सोलसक०-णवणोक० । सम्मत्तुक्कस्सहिदिविहत्तियस्स मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० किमुक्क० अणुक्क० ? णियमा अणुक० अंतोमुहुत्तूणा । णवरि पणुवीसकसायाण अंतोमुहुत्तूणमादि कादूण जाव होती है या अनुत्कृष्ट ? उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी। उनमेंसे अनुत्कृष्ट स्थिति एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग कम तक होती है। इसी प्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये। अनन्तानुबन्धी क्रोधकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सम्यक्त्व ओर सम्यग्मिथ्यात्वका स्थिति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी। उनमेंसे अनुत्कृष्ट स्थिति अपनी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा एक समय कमसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग कम उत्कृष्ट स्थिति तक होती है । पन्द्रह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? नियमसे उत्कृष्ट होती है । इसी प्रकार पन्द्रह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । इसी प्रकार अवधिदर्शनवाले, सम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । ८३०. शुक्ललेश्यावालोंके पंचन्द्रिय तियेच अपर्याप्तकोंके समान भंग है। अभव्यों के सम्यक्त्व और सभ्यग्मिथ्यात्वको छोड़ कर शेष कथन ओघके समान है। तात्पर्य यह है कि अभव्योंक सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व ये दो प्रकृतियाँ नहीं होती, अतः इनके साथ अन्य प्रकृतियों का और अन्य प्रकृतियों के साथ इनका सन्निकर्षे नहीं प्राप्त होता । शेष प्रकृतियोंका सन्निकर्ष ओषके समान है। सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंमें मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट । नियमसे अनुत्कृष्ट होती है। जो अन्तर्मुहूर्त कम अपनी उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर सागर पृथक्त्व तक होती है। सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट । यहाँ आभिनिबोधिक ज्ञानियोंके समानभंग है। इसी प्रकार सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके धारक जीवोंके सन्निकर्ष जानना चाहिये । सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या उत्कृष्ठ होती है या अनुत्कृष्ट ? नियमसे अनुत्कृष्ट होती है । जो उत्कृष्ट स्थितसे अन्तमुहूर्त कम होती है। किन्तु इतनी विशेषता है कि पच्चीस कषायों की अनुत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूत कमसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग कम उत्कृष्ट स्थिति तक होती है। सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट १ नियमसे उत्कृष्ट होती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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