Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 511
________________ ४६२ अयधवलासहिदे कसायपाहुडे [विदिविहत्ती ३. सम्मत्त-सम्मामि०-सोलसक०-णवणोक. किमक्क० अणक्क० १ णियमा उक्क० । एवमेक्केक्कस्स। एवमाहार०-आहारमिस्स-अवगद०-अकसा०-मणपज्ज०-संजद०सामाइयछेदो०-परिहार-मुहुम०-जहाक्खाद०-संजदासंजद०-खइय-उवसम०-सासण०दिहि त्ति । ८२८. एइंदिय-बादरेइंदिय-तप्पज्ज०-पुढवि०-बादरपुढवि०-बादरपुढविपज्ज०आउ०-बादर आउ०-चादरभाउपज्ज०-वणप्फदि-बादरवणप्फदिपत्तेयसरीर-तप्पज्ज०ओरालियमिस्स-वेउव्वियमिस्स-कम्मइय०-असण्णि-अणाहारि० -मदि०-सुद० -विहंग०मिच्छादिहि ति ओघं । णवरि एइंदियादि अणाहारिपजत्तेसु धुवबंधीणमुक्कस्सहिदिविहत्तियस्स चदुणोक० उक्क० अणुक्क० वा । समऊणमादि कादूण जाव अंतोकोडाकोडि त्ति । चदुणोक० उक्कस्सहिदिवि० धुवबंधीणमुक्क० अणुक्क० वा । समयूणमादि कादृण जाव पलिदो० असंखे० भागेणूणा । समऊणावलिऊणा त्ति एसो विसेसो जाणियव्यो। ____८२६. आभिणि-सुद०-ओहि० मिच्छत्तु कस्सहिदिविहत्तियस्स सम्मत्तसम्मामि० किमुक्क० अणुक्क० ? णियमा उक्क० । सोलसक०-णवणोक० किमुक्क० धारक जीवके सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नो नाकषायोंका स्थिात क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? नियमसे उत्कृष्ट होती है। इसी प्रकार प्रत्येक प्रकृतिकी स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष कहना चाहिये। इसी प्रकार आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, अकषायवाले, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदापस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत, यथाख्यातसंयत, संयतासंयत, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, उपशम. सम्यग्दृष्टि और सासादनसम्यग्दृिष्टि जीवोंके जानना चाहिये।। ८२८. एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, जल कायिक, बादर जलकायिक, बादर जलकायिक पर्याप्त, वनस्पति कायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर, बादर वनस्पति काायक प्रत्येक शरीर पर्याप्त, औदारिकमिश्रकाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, कामणकाययोगी, असंज्ञा, अनाहारक, मत्यज्ञानी, ताज्ञानी, विभंगज्ञानी और मिथ्यादृष्टि जीवोंके अोधके समान सन्निकर्ष जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रियोंसे लेकर अनाहारकोंतक जावोंमें ध्रुवबन्धिनी प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके धारक जीवके चार नोकषायोंकी स्थिति उत्कृष्ट भा होती है और अनुत्कृष्ट भी। उनमेसे अनुत्कृष्ट स्थिति एक समय कम अपनी उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर अन्तःकोड़ाकोड़ा सागर तक होती है। चार नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके धारक जीवके ध्रुवबन्धिनी प्रकृतियोंकी स्थिति उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी। उनमेंसे अनुत्कृष्ट स्थिति एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग कम उत्कृष्ट स्थिति तक होती है। यहां पर एक समय कम या एक आवली कम उत्कृष्ट स्थिति होती है इतना विशेष जानना चाहिए। २६. आभिनियोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? नियमसे उत्कृष्ट होती है। सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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