Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 509
________________ ४६० जयघवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहत्ती ३ वेउब्विय-तिण्णिवेद०-चत्तारिक०-असंजद०-चक्खु०-अचक्खु०-पंचले०-भवसिद्धि०सण्णि-आहारि त्ति । १८२५. पंचिंदियतिरि०अपज्ज० मिच्छत्त उक्कस्सहिदिविहत्तियस्स सम्मत्त०सम्मामि० सिया अत्थि सिया णत्थि । जदि अस्थि किमुक्क. अणुक्क० १ णियमा अणुक्कस्सा । अंतोमुहुत्त णमादि कादण जाव एया हिदी। गवरि चरिमुव्वेन्लणकंडएणूणा । सोलसक०-णवणोक० किमुक्क० अणुक्क० १ उक्कस्सा अणुक्कस्सा वा । उक्कस्सादो अणुक्कस्सा समयणमादि कादूण जाव पलिदो० असंखे०भागेणूणा । सम्मत्त० उक्कस्सहिदिविहत्तियस्स मिच्छत्त० किमुक्क० अणुक्क० १ णियमा अणुक्क० अंतोमुहुत्तूणा । सम्मामि० किमक्क० अणुक्क. १ णियमा उक्कस्सा । सोलसक०णवणोक० किमक्क० अणक. १णियमा अणक । अंतोमहुत्त णमादि कादण जाव पलिदोवमस्स असंखे भागेणूणा । एवं सम्मामि० । अणंताणुबंधिकोध० उक्कस्सहिदिविहत्तियस्स मिच्छत्त० किमुक्क. अणुक्क० ? उक्कस्सा अणुक्कस्सा वा । उक्कस्सादो अणुक्कस्सा समयूणमादि कादूण जाव पलिदो० असंखे०भागेणूणा। सम्मत्त० सम्मामिच्छत्तभंगो । पण्णारसक०-णवणोक. किमक्क. अणक ? णियमा उक्कस्सा । वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, वैक्रियिककाययोगी, तीनों वेदवाले, चारों कषायवाले, असंयत, चक्षुदर्शनवाले, अचक्षुदर्शनवाले, कृष्णादि पांच लेश्यावाले, भव्य, संज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिये। ८२५. पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व ये दो प्रकृत्तियाँ कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो उनकी स्थिति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? नियमसे अनुत्कृष्ट होती है । जो अन्तर्मुहूर्त कम अपनी उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर एक स्थिति पर्यंत होती है। किन्तु इतनी विशेषता है कि इसमें अन्तिम उद्वेलना काण्डक प्रमाण स्थितिको घटा देना चाहिये । सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी । उनमेंसे अनुत्कृष्ट स्थिति एक समय कमसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग कम उत्कृष्ट स्थिति तक होती है । सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्वकी स्थिति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? नियमसे अनुत्कृष्ट होती है। जो अपनी उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्त कम होती है । सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थिति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? नियमसे उत्कृष्ट होती है। सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? नियमसे अनुत्कृष्ट होती है । जो अन्तर्मुहूर्त कम अपनी उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग कम उत्कृष्ट स्थिति तक होती है । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थितिविभक्तिके धारक जीवके सन्निकर्ष जानना चाहिये । अनन्तानुबन्धी क्रोधकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके धारक जीवके मिथ्यात्वकी स्थिति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी। उनमेंसे अनुत्कृष्ट स्थिति एक समय कम अपनी उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भाग कम उत्कृष्ट स्थिति तक होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग मिथ्यात्वके समान है। पन्द्रह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? नियमसे उत्कृष्ट होती है। इसी प्रकार पन्द्रह कषाय Jain Education. International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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