Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 513
________________ ४८४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ द्विदिविहत्ती ३ पलिदो० असंखे भागेणूणा त्ति । सम्मामि० किमुक्क० अणुक्क० ? णियमा उक्क० । एवं सम्मामि० । एवमुक्कस्सहिदिसण्णियासो समत्तो । * जहएणहिदिसएिणयासो । ८३१. सुगममेदं । * मिच्छत्तजहणणहिदिसंतकम्मियस्स अणंताणुबंधीणं णत्थि । $ ८३२. अणंताणुबंधीणं णत्थि सण्णियासो त्ति संबंधो कायव्यो । कुदो ? पुर्व चेव विसंजोइदाणं तत्थ हिदिसंताभावादो । * सेसाणं कम्मणं हिदिविहत्ती किं जहएणा अजहाणा ? ६८३३. सुगममेदं । * णियमा अजहण्णा। $८३४. कुदो, उवरि जहण्णहिदि पडिवज्जमाणाणमेत्थ जहण्णत्तविरोहादो । * जहरणादो अजहरणा असंखेज्जगुणब्भहिया। ६८३५ कुदो ? मिच्छत्तस्स दुसमयकालेगहिदीए सेसाए सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्ताणं बारसकसाय-णवणोकसायाणमंतोकोडाकोडिसागरोवममेत्ताणं हिदीणमवसिहाणमवलंभादो । है। इसी प्रकार सन्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति विभक्तिके धारक जीवके सन्निकष जानना चाहिये। इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिसन्निकर्षे समाप्त हुआ। .... * अब जघन्य स्थितिके सन्निकर्षका अधिकार है । ६८३१. यह सूत्र सुगम है । * मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति सत्कर्मवाले जीवके अनन्तानुबन्धी चतुष्कका सनिकर्ष नहीं है। F८३२. यहां पर अनन्तानुबन्धी चतुष्कका सन्निकर्ष नहीं है, इस प्रकार संबन्ध करना चाहिये. क्योंकि मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति प्राप्त होनेके पहले ही इसकी विसंयोजना हो जाती है. अतः इसका मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिके समय स्थिति सत्त्व नहीं पाया जाता है। * मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति सत्कर्मवाले जीवके शेष कर्मोंकी स्थितिविभक्ति क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? ६८३३. यह सूत्र सुगम है। * नियमसे अजघन्य होती है। $ ८३४. क्योंकि शेष कर्मोंकी जघन्य स्थिति आगे जाकर प्राप्त होनेवाली है, अतः उनकी यहां जघन्य स्थिति मानने में विरोध आता है । * वह अजघन्य स्थिति अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी अधिक होती है । ६८३५ क्योंकि जब मिथ्यात्वकी दो समय काल प्रमाण एक स्थिति शेष रहती है तब सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा बारह कवाय और नौ नोकषायोंकी अन्तःकोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण स्थिति शेष पाई जाती है। rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrromen Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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