Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 492
________________ ४७३ wwwINirnwwwvirwww. wwwwwwwwwwww गा० २२] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिडिदिविहत्तियसरिणयासो विसेसाभावादो। ॐ गवरि विसेसो जाणिदव्यो । ६ ७८७. तत्थ पुरिसवेदणिरु भणं काऊण भण्णमाणे णत्थि विसेसो; सव्वकम्मेहि सह सण्णिकासिज्जमाणे इथिवेदसण्णिकासेण समाणत्तादो। हस्स-रदिणिरु भणं काऊण भण्णमाणे मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-सोलसकसाय-भय-दुगुंडाणं सण्णियासेसु णत्थि विसेसोः इथिवेदकस्सहिदिसण्णियासेण समाणत्तादो। इत्थि-पुरिसाणं सण्णियासे अस्थि विसेसो, तं वत्तइस्सासो । तं जहा-हस्स-रदीणमुक्कस्सहिदीए संतीए इत्थि-पुरिसवेदाणं हिंदी सिया उक्कस्सा; कसायाणमुक्कस्सहिदीए पडिच्छिदाए चदुहं पि कम्माणमुक्कस्सहिदिदसणादो। सिया अणुक्कस्सा; पडिहग्गसमए हस्स-रदीसु बज्झमाणियासु इत्थि-पुरिसवेदाणं बंधाभावे संते उक्कस्सहिदीए अभावादो। जदि अणुक्कस्सा तो अंतोमुहुतूणमादि कादण जाव अंतोकोडाकोडि त्ति । कुदो समअणुक्कस्सद्विदिआदिवियप्पो ण लब्भदे ? हस्स-रदीणं व इत्थि-पुरिसवेदाणमेगसमएण पयडिबंधस्स वोच्छेदाभावादो। ६७८८. एदस्स णयणिरुद्धाए कमो वुच्चदे । तं जहा–कसायाणमुक्कस्सहिदि चाहिये, क्योंकि इनके कथनमें कोई विशेषता नहीं है। * किन्तु कुछ विशेष जानना चाहिये । ६७८७. उनमें से पुरुषवेदको रोककर कथन करने पर कोई विशेषता नहीं है, क्योंकि सब कर्मों के साथ पुरुषवेदका सन्निकर्प करने पर स्त्रीवेदके सन्निकर्षके समान है। हास्य और रतिको रोक कर कथन करने पर मिथ्यात्व. सम्यक्त्व. सम्यग्मिथ्यात्व. सोलह कषाय, भय और जुगुप्साके सन्निकषों में कोई विशेषता नहीं है, क्योंकि हास्य और रतिकी उत्कृष्ट स्थितिके साथ उक्त प्रकृतियोंकी स्थितिका होनेवाला सन्निकर्ष स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिके साथ होनेवाले सन्निकर्षके समान है । पर स्त्रीवेद और पुरुषवेदके सन्निकर्षमें कुछ विशेषता है । आगे उसीको बताते हैं। जो इस प्रकार है-हास्य और रतिकी उत्कृष्ट स्थितिके रहते हए स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थिति कदाचित् उत्कृष्ट होती है, क्योंकि कषायकी उत्कृष्ट स्थितिके इनमें संक्रमित हो जाने पर चारों ही कोंकी उत्कृष्ट स्थिति देखी जाती है। कदाचित् अनुत्कृष्ट होती है, क्योंकि प्रतिभा कालके प्रथम समयमें हास्य और रतिके बन्धके समय स्त्रीवेद और पुरुषवेदका बन्ध नहीं होने पर उनकी उत्कृष्ट स्थिति नहीं होती है । यदि हास्य और रतिकी उत्कृष्ट स्थितिके समय स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अनुत्कृष्ट स्थिति होती है तो वह अन्तर्मुहूर्त कम उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर अन्तः कोड़ाकोड़ी तक होती है। शंका-एक समय कम उत्कृष्ट स्थिति आदि विकल्प क्यों नहीं प्राप्त होता है ? समाधान-क्योंकि जिस प्रकार हास्य और रतिका एक समयतक बन्ध होकर अनन्तर उसकी ब्युच्छित्ति हो जाती है, उस प्रकार स्त्रीवेद और पुरुषवेदका एक समयतक बन्ध होकर उसकी ब्युच्छित्ति नहीं होती। ६७८८. अब नयकी अपेक्षा इसके क्रमका कथन करते हैं, जो इस प्रकार है-कषायोंकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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