Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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४७४ -- जयघवलासहिदे कसायपाहुडे
[द्विदिविहत्ती ३ बंधिय पडिहग्गसमए बज्झमाणित्थि-पुरिसवेदेसु बंधावलियादिक्कतकसायुक्कस्सहिदीए संकताए इत्थि-पुरिसवेदाणमुक्कस्सहिदि कादूण पुणो अंतोमुहुत्तं णवुसयवेद-अरदिसोगेहि सह कसायुक्कस्सहिदि बंधिय पडिहग्गसमए अरदि-सोगपयडिबंधवोच्छेददुवारेण बज्झमाणहस्स-रदीसु बंधावलियादिक्कतकसायहिदीए संकंताए हस्स-रदीणमुक्कस्सहिदिविहत्ती होदि । तत्काले इत्थि-पुरिसवेदहिदी सगुक्कस्सहिदि पेक्खिदूण अंतोमुहुत्तूणा । संपहि एदमंतोमुहुत्तूणमादि कादूण णेदव्वं जाव धुवहिदि त्ति एसो विसेसो त्ति ।
___७८६. के वि आइरिया भणंति-एदासु वि पयडीसु णत्थि विसेसो; हस्सरदीणं व एगसमएण पयडिबंधबोच्छेदसंभवादो । इथि पुरिसवेदाणमेगसमएण बंधवोच्छेदो होदि त्ति कुदो णव्वदो ? महाबंधसुत्तादो हस्स-रदीणमुक्कस्सहिदिणिरु भणं काऊणित्थि-पुरिसवेदाणं समयूणादिसण्णियासवियप्पपरूवयउच्चारणादो च णव्वदे । 'णवरि विसेसो जाणियव्वो' ति चुण्णिसुत्तणिद्देसण्णहाणुववत्तीदो इत्थिपरिसवेदाणमेगसमएण बंधवोच्छेदो ण होदि ति ण वोतं जुत्त; एदस्स णिद्देसस्स णवुसयवेद-अरदि-सोगाणं सण्णियासेसु उववत्तिदंसणादो । तं जहा-इत्थिवेदे उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके प्रतिभन्न कालके प्रथम समयमें बँधनेवाले स्त्रीवेद और पुरुषवेदमें बन्धावलिसे रहित कषायकी उत्कृष्ट स्थिति के संक्रान्त होने पर स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थिति प्राप्त होती है । पुनः अन्तर्मुहूर्त काल तक नपुंसकवेद, अरंति और शोकके साथ कषायकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके प्रतिभग्नकालके प्रथम समयमें अरति और शोक इन दो प्रकृतियोंका बन्ध ब्युच्छित्तिद्वारा बंधनेवाली हास्य और रतिमें बन्धावलिसे रहित कषायकी स्थितिके संक्रान्त होने पर हास्य और रतिकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है। तथा उस समय स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी स्थिति अपनी उत्कृष्ट स्थितिको देखते हुए अन्तर्मुहूर्त कम होती है। अब इस अन्तमुहूत कम उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर ध्रुवस्थिति प्राप्त होने तक स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी स्थिति घटाते जाना चाहिये। यही यहाँ विशेषता है।
७८६. कुछ आचार्य कहते हैं कि इन प्रकृतियोंमें भी कोई विशेषता नहीं है, क्योंकि हास्य और रतिके समान इन प्रकृतियोंका भी एक समय तक बन्ध होकर अनन्तर उनकी व्युच्छित्ति संभव है।
शंका-स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी एक समयके द्वारा बन्धव्युच्छित्ति होती है यह किस प्रेमाण से जाना जाता है ? . समाधान-महाबन्धसूत्र से। तथा हास्य और रति की उत्कृष्ट स्थितिको रोककर स्त्रीवेद और पुरुषवेद की एक समय कम उत्कृष्ट स्थिति आदि सन्निकर्ष विकल्पों का कथन करनेवाली उच्चारणासे जाना जाता है। __ शंका-'णवरि विसेसो जाणियव्वो' इस प्रकार चूर्णिसूत्रका निर्देश अन्यथा बन नहीं सकता, इसलिये स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी एक समयके द्वारा बन्धव्युच्छित्ति नहीं होती।
समाधान-ऐसा कहना ठीक नहीं है क्योंकि इस निर्देशकी सार्थकता नपुंसकवेदन, रति
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