Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गी० २२ हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिविहत्तियसरिणयासो विसेसाभावादो ।
* जहा मिच्छत्तस्स तहा सोलसकसायाणं ।
७५६. जहा मिच्छत्तु क्कस्सहिदिणिरु भणं काऊण सेसासेसमोहपयडिहिदीणं सण्णियासो कदो तहा सोलसकसाएसु एगेगकसायस्स उक्कस्सहिदिणिरु भणं काऊण सेसकम्महिदीणं सण्णियासो कायव्वो; अविसेसादो ।
* इत्थिवेदस्स उकस्सहिदिविहत्तियस्स मिच्छत्तस्स हिदिविहत्ती किमुकस्सा भणुकस्सा?
६७६० सुगममेदं ।
ॐ णियमा अणुकस्सा ।
६७६१. कुदो ? इत्थिवेदबंधकाले मिच्छत्तु कस्सहिदिबंधाभावादो। ण च इत्थिवेदस्स बंधेण विणा हिंदीए उक्कस्सत्तं संभवइ, अपडिग्गहस्सित्थिवेदस्सुवरि बंधावलियाइक्कतकसायुक्कस्सहिदीए संकमाभावादो। तम्हा णियमा अणुक्कस्सा ति मुर्ग सुभासिदं।
* उकस्सादो अणुकस्सा समयूणमादि कादूण जाव पलिदोवमस्स असंखेजदिभागेषूणा त्ति । उत्कृष्ट स्थितिको विवक्षित कर शेष कर्मोंकी स्थितियोंका सन्निकर्ष कहना चाहिये ; क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है।
जिस प्रकार मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको विवक्षित कर शेष प्रकृतियों की स्थितियोंका सनिकर्ष कहा उसी प्रकार सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिको विवक्षित कर शेष प्रकृतियोंकी स्थितियोंका भी सन्निकर्षे कहना चाहिये।
६७५६. जिस प्रकार मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको रोक कर शेष सब मोह प्रकृतियोंकी स्थितियोंका सन्निकर्ष किया है उसी प्रकार सोलह कषायोंमेंसे एक एक कषायकी उत्कृष्ट स्थितिको रोककर शेष कर्मोंकी स्थितियोंका सन्निकर्ष करना चाहिये, क्योंकि इनके कथनमें कोई विशेषता नहीं है।
स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति के समय मिथ्यात्वकी स्थितिविभक्ति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ?
६७६०. यह सूत्र सुगम है। * नियमसे अनुत्कृष्ट होती है ।
६७६१.क्योंकि स्त्रीवेदके बन्धके समय मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिका बन्ध नहीं होता है। और स्त्रीवेदका बन्ध हुए बिना उसकी स्थिति उत्कृष्ट हो नहीं सकती, क्योंकि अपतद्ग्रहरूप स्त्रीवेदमें बन्धावलिके बाद कषायकी उत्कृष्ट स्थितिका संक्रमण नहीं होता है । इसलिये स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिके समय मिथ्यात्वकी स्थिति नियमसे अनुत्कृष्ट होती है यह सूत्र उचित ही कहा है।
वह अनुत्कृष्ट स्थिति अपनी उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा एक समय कमसे लेकर पन्योपमके असंख्यातवें भाग कम. स्थिति तक होती है ।
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