Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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मधवलासहिदे कसा पाहुडे
[ द्विदिविहसी ३
हिदिणा बंधावलियाइक्कंतकसायद्विदिसं कमेणुक्कस्सीकयणवणोकसाएण जहणपडिहम्मद्धमच्छिय सम्मत्ते पडिवण्णे सम्मत्त क्कस्सद्विदिविहत्ती होदि । तक्काले सोलसकसाय - णवणोकसायाणुक्कस्सद्विदी अंतोमुडुत्तूणा; जहण्णपडिहग्गद्धाए अधडिदिगलणाए गलिदचादो । मिच्छत्तु क्कस्स द्विदिबंधकाले सोलसकसायाणं समयृणुक्कस्सहिदीए पबद्धा अण्णा सोलसकसाय - णवणोकसायाणमणुक्कसहिदी होदिः पुण्वहिदिं पेक्खिदूण समयुणत्तादो | एवं दुसमयूण - तिसमयूणादिकमेण श्रोदारेदव्वं जाव समयूणा बाहा - कंडएरणरणुक्कस्सहिदि ति । तत्थ सव्वपच्छिमवियप्पो वुञ्चदे । तं जहा - 1 -मिच्छत्तु क्कस्सहिदिबंधेण सह कसायाणं समयूणाबाहाकंड एरणूणुक्कस्सहिदिं बंधिय अवदिपहिग्गद्धमधडिदिगलणाए गालिय सम्मत्त पडिवण्णे सोलसकसाय-रावणोकसायाणं हिदी सक्सहिदि पेक्खिदूण समयूणाबाहाकंडएण जहण्णपडिहग्गद्धाए च ऊणा । एत्तो हेट्ठा णोदारेढुं सक्किज्जइ, ओदारिदे सम्मत्त कस्स द्विदिविणासादो ।
* एवं सम्मामिच्छत्तस्स वि ।
$ ७५८. जहा सम्मत्तु क्कस्सद्विदिणिरोहं काऊण अवसेसंकम्मद्विदीर्णं सण्णियासो कदो तहा सम्मामिच्छत् क्कस्सद्विदिणिरोहं काऊण सेसकम्मद्विदीर्ण सण्णियासो कायच्चो,
बांधी है और बन्धावलिके बाद जिसने कषायकी स्थितिका संक्रमण करके नौ नोकषायोंकी उत्कष्ट स्थिति की है ऐसा अट्ठाईस प्रकृतियोंका सत्कर्मवाला जीव यदि जघन्य प्रतिभग्नकाल तक मिध्यात्वमें रहकर सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ तो उस समय उसके सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है और उसी समय उसके सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम होती है, क्योंकि इसके जघन्य प्रतिभग्न काल अधः स्थितिगलनाके द्वारा गल चुका है । तथा मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धके समय सोलह कषायों की एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध होने पर सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिके समय सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी अन्य अनुत्कृष्ट स्थिति होती है, क्योंकि पहलेकी स्थितिको देखते हुए यह स्थिति एक समय कम है । इसी प्रकार दो समय कम, तीन समय कम आदि क्रमसे एक समय कम आबाधा काण्डकसे न्यून उत्कृष्ट स्थितिके प्राप्त होने तक सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थितिको घटाते जाना चाहिये । वहाँ अब सबसे अन्तिम विकल्प कहते हैं । वह इस प्रकार है - मिथ्यात्व के उत्कृष्ट स्थिति बन्धके साथ कषायों की एक समय कम आबाधाकाण्डकसे न्यून उत्कृष्ट स्थितिको बाँध कर तदनन्तर अवस्थित प्रतिभग्नकालको अधः स्थितिगलनाके द्वारा गलाकर इस जीवके सम्यक्त्वके प्राप्त होने पर सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी स्थिति अपनी उत्कृष्ट स्थितिको देखते हुए एक समय कम आबाधाकाण्डक और जघन्य प्रतिभग्न काल प्रमाण कम होती है। यहां सोलह कषाय और नौ नोकषायों की स्थितिको इससे और कम नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इनकी स्थितिको इससे और कम करने पर सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिका विनाश हो जाता है ।
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इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको विवक्षित कर शेष प्रकृतियों की स्थितियोंका सन्निकर्ष करना चाहिये ।
५८. जिस प्रकार सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिको विवक्षित कर अर्थात् सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थिति रहते हुए शेष कर्मों की स्थितियोंका सन्निकर्ष कहा उसी प्रकार सम्यमिध्यात्वकी
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