Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहस्ती ३ 8 सम्मामिच्छुत्तहिदिविहत्ती किमुक्कस्सा किमणुक्कस्सा ? $ ७५३. सुगममेदं ।
ॐ णियमा उकस्सा।
३७५४. कुदो ? अंतोमुहुत्त णसत्तरिसागरोवमकोडाकोडिमेत्तमिच्छत्तहिदीए पढमसमयवेदगसम्मादिहिम्मि सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तसरूवेण जुगवं संकंतिदसणादो । सम्मामिच्छत्तस्सुदयणिसेगो सगसरूवेण पत्थि; थिवुक्कसंकमेण सम्मत्तुदयणिसेगसरूवेण परिणदत्तादो । तम्हा सम्मत्त क्कस्सहिदिं पेक्विदण सम्मामिच्छत्तु क्कस्सहिदीए एगणिसेगेणूणाए होदव्वं । ण च उदयणिसेगस्स सगसरूवेण धरणहमहावीससंतकम्मियमिच्छाइट्टी तप्पाओग्गुक्कस्समिच्छत्तहिदिसंतकम्मिश्रो सम्मामिच्छत्तं पडिवज्जावे, सक्किज्जइ, सम्मामिच्छाइडिम्मि दंसणतियस्स संकमाभावेण दोण्हं पि अणुक्कस्सहिदिप्पसंगादो त्ति ? ण, उक्कस्सहिदीए पक्कंताए कालं मोत्तूण णिसेयाणं पहाणत्ताभावादो । कत्थ पुण णिसेयाणं पहाणत्त ? जहण्णहिदीए । तं कुदो णव्वदे ? छण्णोकसायजहण्णहिदीए अंतोमुहुत्तावहाणपरूवणसुत्तादो। ण कोहसंजलणेण वियहिचारो. अन्यथा सम्यक्त्वको उत्कृष्टस्थिति एक प्रकारकी नहीं बन सकती है।
* सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिके समय सभ्यग्मिथ्यात्वकी स्थितिविभक्ति क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ?
६७५३. यह सूत्र सुगम है। * नियमसे उत्कृष्ट होती है।
६७५४. क्योंकि अन्तमुहूर्त कम सत्तर कोडाकोड़ी सागरप्रमाण मिथ्यात्वकी स्थितिका वेदकसम्यग्दृष्टिके पहले समयमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वरूपसे एक साथ संक्रमण देखा जाता है।
शंका-सम्यग्दृष्टि जीवके सम्यग्मिथ्यात्वका उदयनिषेक अपने रूपसे उदयमें नहीं आता है, क्योंकि स्तिवुकसंक्रमणके द्वारा उसका सम्यक्त्वके उदयनिषेकरूपसे परिमणन हो जाता है। अतः सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिके समय सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति एक निषेक कम होनी चाहिये। यदि कहा जाय कि जिससे सम्यग्मिथ्यात्वका उदयनिषेक अपने रूपसे प्राप्त हो जाय इसलिये अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाले मिथ्यादृष्टि जीवको तत्प्रायोग्य मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मके साथ सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान प्राप्त करा दिया जाय सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें दर्शनमोहनीयकी तीन प्रकृतियोंका संक्रमण नहीं होता, अतः वहां दोनोंकी ही अनुत्कृष्ट स्थितिका प्रसंग प्राप्त होता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि उत्कृष्ट स्थिति में कालको छोड़कर निषेकोंकी प्रधानता नहीं है। शंका-तो फिर निषेकोंकी प्रधानता कहाँ पर है ? समाधान-जघन्य स्थितिमें। शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका काल अन्तर्मुहूर्त है इस बातका कथन करने
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