Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
गा. २२) हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिविहत्तियसरिणयासो
® सम्मत्तस्स उक्कस्सहिदिविहत्तियस्स मिच्छत्तस्स हिदिविहत्ती किमुक्कस्सा किमणुकस्सा ?
६७४९. सुगममेदं । * णियमा अणुकसा।
७५०. कुदो १ सम्मादिहिम्मि मिच्छत्तस्स बंधाभावेण तत्थ तदुक्कस्सहिदीए असंभवादो। ण च पढमसमयवेदयसम्मादिहिं मोत्तूणण्णत्थ सम्मत्तस्सुक्कस्सहिदिविहत्ती होदि, मिच्छादिडिम्हि अपडिग्गहसम्मत्तकम्मे सम्मत्तस्सुवरि मिच्छत्तहिदीए संकमाभावादो।
* उक्कस्सादो अणुक्कस्सा अंतोमुहुत्त णा।
७५१. कुदो ? मिच्छत्तु क्कस्सहिदि बंधिय पडिहज्जिदूण अंतोमुहुत्तमच्छिय वेदगसम्मत्त पडिवण्णपढमसमए मिच्छत्तहिदीए सम्मत्तस्सुवरि संकंताए सम्मत्तस्सुकस्सहिदिविहत्ती होदि, तत्थ मिच्छत्तहिदीए सगोघुक्कस्सहिदि पेक्खदूण अंतोमुहुतणत्तु वलभादो।
* पत्थि अण्णो वियप्पो।
$ ७५२. सम्मत्तहिदीए उक्कस्सियाए संतीए जहा अण्णेसि कम्माणमणुक्कस्सहिदी अणेयवियप्पा तधा मिच्छत्ताणुक्कस्सहिदी गाणेमवियप्पा सम्मत्तु क्कस्सहिदीए एयवियप्पत्तण्णहाणुबवत्तीदो।
* सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्वकी स्थिति या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? ६७४६. यह सूत्र सुगम है। * नियमसे अनुत्कृष्ट होती है।
६७५०. क्योंकि सम्यग्दृष्टिके मिथ्यात्वका बन्ध नहीं होता, अतएव वहां उसकी उत्कृष्ट स्थिति नहीं हो सकती और प्रथम समयवर्ती वेदकसम्यग्दृष्टिको छोड़कर सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति अन्यत्र होती नहीं, क्योंकि मिथ्यादृष्टि जीवके सम्यक्त्व प्रकृति पतद्ग्रहपनेके अयोग्य है, अतः उसके सम्यक्त्वमें मिथ्यात्वकी स्थितिका संकमण नहीं होता है। ___ * वह अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्ति आनी उत्कृष्ट स्थितिसे अन्तर्मुहूर्त कम होती है।
६७५१. क्योंकि मिथ्यात्वकी उत्कृष्टस्थितिका बन्ध करके और मिथ्यात्वसे निवृत्त होकर तथा वहां अन्तमुहूर्तकाल तक ठहरकर जो वेदकसम्यक्त्वके प्राप्त होनेके पहले समयमें मिथ्यात्वकी स्थितिका सम्यक्त्वमें संक्रमण करता है उसके सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है। पर वहां मिथ्यात्वकी स्थिति अपनी ओघ उत्कृष्ट स्थितिको देखते हुए अन्तर्मुहूर्त कम पाई जाती है ।
___ * यहां मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट स्थितिका इससे अतिरिक्त अन्य विकल्प नहीं होता।
७५२. सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिके रहते हुए जिस प्रकार अन्य कर्मोको अनुत्कृष्ट स्थिति अनेक प्रकारकी होती है उस प्रकार मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट स्थिति अनेक प्रकारकी नहीं होती है,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org