Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 465
________________ ___जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [हिदिविहती ३ वि अक्खा पुव्वं व संचारिय सगसगपंतीए अंतम्मि कायव्वा । एवं कदे हिदिबंधोसरणेणुप्पणसव्वसण्णियासवियप्पा लद्धा होति । पुणो सेसवियप्पे णाणाजीवाणमुब्वेल्लणमस्सिदण उप्पाएजो । एवमुप्पाइदे पण्णारसमपरूवणा समत्त होदि १५ । ७३६. सोलसमपरूवणे भण्णमाणे दुममयकालेगहि दिसंतकम्मिएण मिच्छत्तु - क्कस्सहिदीए पबद्धाए एगो सण्णियासवियप्पो। दोहिदितिसमयसंतकम्मिएण मिच्छत्त - कस्सहिदीए पबद्धाए विदियो सण्णियासवियप्पो। तिण्णिहिदिचदुसमयसम्मसंतकम्मिएण मिच्छत्तुक्कस्सहिदीए पबद्धाए तदियो सण्णियासवियप्पो । एवं गंतूण समयणावलियमेतहिदिसंतकम्मिएण मिच्छत्तु कस्सहिदीए पबद्धाए समयूणावलियमेत्ता सण्णियासवियप्पा लब्भंति । पुणो आवलियब्भहियचरिमुव्वेल्लणकंडयचरिमफालिमत्तद्विदिसंतकम्मिएण मिच्छत्त कस्सहिदीए पबद्धाए आवलियमेत्ता सण्णियासवियप्पा होति । कुदो, पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमंतरिद्ण संपहियसण्णियासवियप्पुप्पत्तीदो । एत्तो उपरिमसण्णियासवियप्पडाणाणि पडिलोमेण णिरंतरमुप्पाइय घेत्तव्याणि जाव मिच्छत्त कस्सहिदि बंधिय सव्वजहण्णपडिहग्ग-सम्मत्त-मिच्छत्तद्धाओगमिय मिच्छतु कस्सहिदि वंधिय हिदो त्ति । एवं णीदे सोलसमपरूपणा समत्ता होदि । एदे सण्णियासवियप्पा सव्वे वि पुणरुत्ता पढमपरूवणाए उप्पण्णाणं चेवुप्पत्तीदो। तदो पढमरूवणा करना चाहिये । पुनः शेष तीनों ही अक्षोंका पहलेके समान संचार करके उन्हें अपनी अपनी पंक्तिमें अन्तको प्राप्त कराना चाहिये। इस प्रकार करने पर स्थितिबन्धापसरणासे उत्पन्न हुए सभी सन्निकर्षके विकल्प प्राप्त हो जाते हैं। पुनः शेष विकल्प नाना जीवोंके उद्वेलनाका आश्रय लेकर उत्पन्न करना चाहिये । इस प्रकार उत्पन्न करने पर पन्द्रहवीं प्ररूपणा समाप्त होती है। ६७३६. अब सोलहवीं प्ररूपणाके कथन करने पर सम्यक्त्वकी दो समय कालप्रमाण एक स्थितिनिषेकसत्कर्मवाले जीवके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध होने पर एक सन्निकर्षविकल्प होता है । सम्यक्त्वकी तीन समय कालप्रमाण दो निषेकस्थितिसत्कर्मवाले जीवके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध होने पर दूसरा सन्निकर्षविकल्प होता है। सम्यक्त्वकी चार समयप्रमाण तीन निषेकस्थितिसत्कर्मवाले जीवके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध होने पर तीसरा सन्निकर्षविकल्प होता है । इसी प्रकार आगे जाकर एक समय कम आवलीप्रमाण स्थितिसत्कर्मवाले जीवके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध होने पर एक समय कम आवलीप्रमाण सन्निकर्ष वकल्प प्राप्त होते हैं। पुनः एक आवली अधिक अन्तिम उद्वेलनाकाण्डककी अन्तिम फालिप्रमाण स्थितिसत्कर्मवाले जीवके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध हाने पर आवलीप्रमाण सन्निकर्षविकल्प प्राप्त होते हैं, क्योंकि पल्योपमके असंख्यातवें भागको अन्तरित करके वर्तमानकालीन सन्निकर्षविकल्प उत्पन्न हुए हैं। इसी प्रकार आगे भी उपरिम सन्निकर्ष विकल्पस्थानों को प्रतिलोमपद्धतिसे निरन्तर उत्पन्न करके तब तक ग्रहण करना चाहिये जब तक मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके तदनन्तर मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके सबसे जघन्य कालको तथा सम्यक्त्व और मिथ्यात्वके सबसे जघन्य कालोंको व्यतीत करके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बन्ध करनेवाला प्राप्त होवे। इस प्रकार सन्निकषविकल्पोंके ले जाने पर सोलहवीं प्ररूपणा समाप्त होती है। ... शंका-ये सभी सन्निकर्षविकल्प पुनरुक्त हैं, क्योंकि पहली प्ररूपणामें उत्पन्न करके बतलाये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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