Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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४४२ जयपक्लासहिदे कसायपाहुरे
[विविषिही ३ एवं छहपरूवणा गदा।
७२६. संपहि सत्तमभंगे भण्णमाणे मिच्छत्तु कस्सहिदि समयूणादिकमेणो. दारिय पडिहग्ग-सम्मत्तद्धाओ अवहिदाओ. करिय मिच्छत्तद्धं समयादिकमेण वडाविय मिच्छत्तुक्कस्सहिदि बंधाविय पुच्वं व जाणिदूण अोदारेदव्यं जाव सम्मत्तचरिमवियप्पो त्ति । एवमोदारिदे सत्तमपरूवणा समत्ता होदि ।।
७२७. संपहि अहमवियप्पे भण्णमाणे मिच्छत्तुक्कस्सहिदि बंधाविय पडिहग्गकालं सम्मत्तकालं च समयाहिय-दुसमयाहियादिकमेण वड्डाविय मिच्छत्तद्धमवहिदं कादूण ओदारेदव्वं जाव सम्मत्तस्स एगा हिदी दुसमयकाला चेहिदा त्ति । एवमोदारिदे अहमभंगपरूवणा गदा ८ ।
७२८. संपहि णवमभंगपरूवणे भण्णमाणे मिच्छत्तु क्कस्सहिदि बंधाविय पडिहग्ग-मिच्छत्तद्धाओ समयाहिय-दुसमयाहियादिकमेण परिवाडीए वडाविय सम्मत्तद्धमवहिदं करिय मिच्छत्तु क्कस्सहिदि बंधाविय ओदारेदव्वं जाव सम्मत्तस्स एया हिदी दुसमयकाला हिदा त्ति । एवं णीदे णवमभंगपरूवणा समत्ता है।
७२९. संपहि दसमपरूवणे भण्णमाणे सम्मत्त-मिच्छत्तद्धाश्रो समउत्तरादिकमेण परिवाडीए वडाविय पडिहग्गकालमवहिदं करिय उभयत्यमिच्छत्तु क्कस्सहिदि छठी प्ररूपणा समाप्त हुई।
६७२६ अब सातवें भंगके कथन करने पर मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको एक समय कम इत्यादि क्रमसे घटाकर और मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके कालको तथा सम्यक्त्वके कालको अवस्थित करके और मिथ्यात्वके कालको एक समय आदिके क्रमसे बढ़ाकर मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करावे । इस प्रकार सम्यक्त्वकी स्थितिका अन्तिम विकल्प प्राप्त होने तक पहलेके समान जानकर उसकी स्थितिको घटाते जाना चाहिये । इस प्रकार सम्यक्त्वकी स्थितिके घटाने पर सातवीं प्ररूपणा समाप्त होती है।
६७२७. अब आठवें विकल्पके कथन करने पर मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कराके तथा मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके कालको और सम्यक्त्वके कालको एक समय अधिक और दो समय अधिक इत्यादि क्रमसे बढ़ाकर तथा मिथ्यात्वके कालको अवस्थित करके सम्यक्त्वकी दो समय कालप्रमाण एक स्थिति प्राप्त होने तक उसकी स्थिति घटाते जाना चाहिये । इस प्रकार सम्यक्त्वकी स्थितिके घटाने पर आठवीं प्ररूपणा समाप्त होती है। ___७२८. जब नौवें भंगकी प्ररूपणा करने पर मिथ्यात्वको उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कराके और मिथ्यात्वसे निवृत्त होने के कालको तथा मिथ्यात्वके कालको एक समय अधिक और दो समय अधिक इत्यादि क्रमसे बढ़ाकर तथा सम्यक्त्वके कालको अवस्थित करके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कराके सम्यक्त्वकी दो समय कालप्रमाण एक स्थितिके प्राप्त होने तक उसकी स्थिति घटाते जाना चाहिये । इस प्रकार विधिके करने पर नौवें भंगकी प्ररूपणा समाप्त होती है।
६७२६. अब दसवीं प्ररूपणाके कथन करने पर सम्यक्त्व और मिथ्यात्वके कालको उत्तरोत्तर एक समय आदिके क्रमसे बढ़ाकर और मिथ्यात्वसे निवृत्त होनेके कालको अवस्थित करके तथा
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