Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कला पाहुडे
[ द्विदिहिती ३
छ चो६० देसूणा । अथवा इत्थि - पुरिस० उक्क० लोग० असंखे० भागो चेव । सम्मत्तसम्मामि० ० उक० खेत्तभंगो । अणुक्क छ चोद्दस० देसूणा । पढमाए खेत्तभंगो । विदियादि जाव सत्तमा सगपोसणं कायव्वं ।
९६२४. तिरिक्ख० मिच्छत्त- सोलसक० - पंचणोक० उक्क० लोग असंखे०भागो छ चोद० देसूणा, अणुक्क० सव्वलोगों । चत्तारिणोकसाय उक्क० लोग० असंखे० भागो । अथवा णवणोक० उक्क० तेरह चोदस० । अणुक्क० सव्वलोगो । सम्मत्त सम्मामि० ० उक्क० लोग० असंखे ० भागो, अणुक्क० लोग० असंखे० भागो सव्वलोगो वा ।
छह भाग प्रेमारण क्षेत्रका स्पर्श किया है । अथवा स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका ही स्पर्श किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंके स्पर्शनका भंग क्षेत्रके समान है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवनेत्रनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। पहली पृथिवी में स्पर्श क्षेत्रके समान है । तथा दूसरीसे लेकर सातवीं पृथ्वी तक अपने अपने स्पर्शके समान स्पर्शन कहना चाहिये ।
बिशेषार्थ — नरकगतिमें सामान्यसे और प्रत्येक नरकका जो स्पर्श बतलाया है वही यहां सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिवाले नारकियोंके स्पर्श प्राप्त होता है, इसलिये तदनुसार उसका यहां विचार कर लेना चाहिये । किन्तु इसके दो अपवाद हैं। पहला तो यह कि विकल्प रूपसे स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिवालों का स्पर्श लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही प्राप्त होता है । इसके कारणका निर्देश पहले कर ही आये हैं । और दूसरा यह कि सम्ययत्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिवालोंका स्पर्श उनके क्षेत्रके समान ही है। कारण यह है कि इन दोनों प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थिति वेदक सम्यक्त्वके पहले समय में उन्हीं जीवोंके सम्भव है जिन्होंने मिध्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करके अति लघुकालमें वेदक सम्यक्त्वको प्राप्त कर लिया है | यदि ऐसे नारकी जीवोंका वर्तमान और अतीत दोनों प्रकारका स्पर्श देखा जाता है तो वह लोकके असंख्यातवें भागसे अधिक नहीं होता, अतः यहां उक्त दोनों प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिवालोंका स्पर्श उनके क्षेत्र के समान बतलाया है ।
§ ६२४. तिर्यंचोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और पांच नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने सब लोक प्रमाण क्षेत्रका प किया है। चार नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । अथवा नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने सनालीके चौदह भागों में से कुछ कम तेरह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति, वाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है ।
विशेषार्थ — तिर्यंचों में संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यंचों का वर्तमानकालीन स्पर्श लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है और ये ही मिध्यात्व, सोलह कषाय और पांच नोकषायोंकी उत्कृष्ट
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