Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 448
________________ ४२६ गा० २२] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिहिदिविहत्तियसरिणयासो उक्कस्सहिदिम्मि ऊणाणि करिय बंधिदूण श्रोदारेदव्वं । संपहि मिच्छत्तमस्सिदण हेढा ओदारेहुँ सक्कदे सव्वविसुद्धेण मिच्छाइहिणा घादिदसवजहण्णहिदिसंतं तिहि अवहिदजहण्णद्धाहि यूणं सम्मत्तहिदी पत्ता त्ति । $ ७१६. संपहि सम्मत्तसंतकम्मियमिच्छाइडिजीवे घेत्त णुव्वेल्लणाए मिच्छत्तु - कस्सहिदीए सह सम्मत्तहेहिमहिदीणं सण्णियासो वुच्चदे । तं जहा–तत्थ समयाहियउव्वेल्लणकंडयमेत्तजीवे अस्सिदूण सण्णियासपरूवणं कस्सामो। एत्थ ताव समयाहियकंडयमेतजीवाणं सम्मत्तहिदीए दीहलं वुच्चदे-पढमजीवो मिच्छनधुवहिदीदो समुप्पण्णसम्मत्तधुवहिदीए उवरि समयूणुक्कीरणद्धाहियसयलेगुव्वेल्लणकंडयधारो विदियजीवो समयूणुकीरदाहियसमयूणुव्वेल्लणकंडएण अहियसम्मत्तधुवहिदिधारो तदियजीवो समयूणुकीरणद्धाहियदुसमऊणुव्वेल्लणकंडएणब्भहियसम्मत्तधुवहिदिधारओ चउत्थजीवो समयूणुकीरणद्धाहियतिसमयूणुव्वेल्लणकंडयभहियसम्मत्तधुवहिदिधारओ पंचमजीबो समयूणुकीरणद्धाहियचदुसमयूणुव्वेल्लणकडयन्भहियसम्मत्तधुवहिदिधारओ एवंणेदवंजाव समयाहियउज्वेल्लणकंडयमेत्तजीवा त्ति । तत्थ एदेसु जीवेसु जो पढमजीवो तेणुव्वेल्लणएगकंडए ایس سی میجر جی جی و عی Powww शेष रहे उतना कम मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कराके सम्यक्त्वकी स्थितिको घटाते जाना चाहिये । इसके आगे मिथ्यात्वको उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा सम्यक्त्वकी स्थितिको अन्तःकोडाकोड़ी सागरसे और नीचे उतारना शक्य नहीं है क्योंकि घात करने पर जिसके ( संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तके योग्य )मिथ्यात्वकी सबसे जघन्य स्थितिका सत्त्व है ऐसे सर्वविशुद्ध मिथ्यादृष्टिने मिथ्यात्वके जघन्य स्थितिसत्त्वकी अपेक्षा तीन अवस्थित जघन्य कालोंसे न्यून सम्यक्त्वकी स्थिति प्राप्त कर ली है। ६७१६. अब सम्यक्त्व सत्कर्मवाले मिथ्यादृष्टि जीवका आश्रय लेकर उद्वेलनामें मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके साथ सम्यक्त्वकी ध्र वस्थितिसे नीचेकी स्थितियोंका सन्निकर्ष कहते हैं। जो इस प्रकार है-इस कथनमें पहले एक समय अधिक उद्वेलनाकाण्डकप्रमाण जीवोंका आश्रय लेकर सन्निकर्षका प्ररूपण करेंगे । अतः यहां पर पहले एक समय अधिक आबाधाकाण्डकप्रमाण जीवोंके सम्यक्त्वकी स्थितिका दीर्घत्व कहते हैं-मिथ्यात्वकी ध्र वस्थितिसे जो सम्यक्त्वको ध्रु वस्थिति उत्पन्न होती है उसके ऊपर एक समय कम उत्कीरणाकालसे अधिक पूरे उद्वलनाकाण्डकका धारक प्रथम जीव है। एक समय कम उत्कीरणाकालको एक समय कम उद्वेलनाकाण्डकमें मिला देने पर जो प्रमाण हो उतने प्रमाणसे अधिक सम्यक्त्वकी ध्रुवस्थितिका धारक दूसरा जीव है। एक समय कम उत्कीरणाकालको दो समय कम उद्वेलनाकाण्डकमें मिला देनेपर जो प्रमाण हो उतने प्रमाणसे अधिक सम्यक्त्वको ध्रु वस्थितिका धारक तीसरा जीव है। एक समय कम उत्कीरणाकालको तीन समय कम उद्वेलनाकाण्डकमें मिला देनेपर जो प्रमाण हो उतने प्रमाणसे अधिक सम्यक्त्वकी ध्र वस्थितिका धारक चौथा जीव है। एक समय कम उत्कीरणा कालको चार समय कम उद्वेलनाकाण्डकमें मिला देने पर जो प्रमाण हो उतने प्रमाणसे अधिक सम्यक्त्वकी ध्रुवस्थितिका धारक पांचवां जीव है। इस प्रकार समयाधिक उद्वेलनाकाण्डकप्रमाण जीव प्राप्त होने तक इसीप्रकार कथन करते जाना चाहिये। अब इन जीवोंमें जो पहला जीव है उसके द्वारा एक उद्वेलनाकाण्डकके घात करने पर सम्यक्त्वकी ध्रु वस्थितिसे एक समय कम सम्यक्त्वकी स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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