Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 450
________________ गा० २२ द्विदिवही उत्तरपयडिद्विदिविहत्तियसरिण्यासो ४३१ अण्णो सण्णियासवियप्पो होदि । दुसमयृणुदयावलियमेत्तसम्मत्तद्विदिधारएण मिच्छत्तुक्कस्सद्विदीए पबद्धाए अण्णो सण्णियासवियप्पो होदि । एवं गंतूण दुसमयकालेगसम्मणि से यहि दिधारएण मिच्छत्त कस्सहिंदीए पबद्धाए चरिमो सण्णियासवियप्पो होदि । एदस्स सुत्तस्स एसा संदिही । ०० ० ० ० O O ० ० ० ० ० ० ० ० G ०२०००२०००२०००२०००२०००२०००२००० ००२०००२०००२०००२०००२०००२०००२००० ०००२०००२०००२०००२०००२०००२०००२००० ००००२०००२०००२०००२०००२०००२०००२००० ०००००२०००२०००२०००२०००२०००२०००२००० * णवरि चरिमुव्वेल्लणकंडयचरिमफालीए ऊणा । १७१८. जहा से सुव्वेल्लणकंडएसु णाणाजीवे अस्सिदूण निरंतरद्वाणाणि लद्धाणि तथा चरिमुव्वेल्लणकंडयम्मि निरंतरद्वाणाणि किण्ण लब्धंति ? ण, चरिमजहणु॰ वेल्लणकंडयादो कम्हि वि जीवे समयूणादिकमेणूणचरिमुव्वेल्लणकंडयाणुवलंभादो । उब्वेल्लणकण्डयफालीओ सव्वजीवेसु सरिसाओ किष्ण होंति ? ण, तासिं सरिस संते बीए हा सांतर हाणुप्पत्तिप्पसंगादो । ण च एवं; चरिमकंडयचरिमफालिं मोत्तण अण्णस्थ निरंतर कमेण सण्णियासपरूवयसुत्रेणेदेण सह विरोहादो । एवं पढमपरूवणा समत्ता । विकल्प प्राप्त होता है । तथा सम्यक्त्वकी दो समय कम उदयावलिप्रमाण स्थितिको धारण करनेवाले जीवके द्वारा मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध करने पर एक अन्य सन्निकर्षविकल्प प्राप्त होता है । इसी प्रकार आगे जाकर सम्यक्त्वके एक निषेककी दो समय कालप्रमाण स्थितिको धारण करनेवाले जीवके द्वारा मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति के बन्ध करने पर अन्तिम सन्निकर्षविकल्प प्राप्त होता है । इस सूत्रकी यह संदृष्टि है । ( संदृष्टि मूल में देखिये । ) - किन्तु इतनी विशेषता है कि ये सन्निकर्षविकल्प अन्तिम उद्वेलनाकाण्डककी अन्तिम फालिसे रहित हैं । Jain Education International ९७१८. शंका - जिस प्रकार शेष उद्वेलना काण्डकों में नाना जीवोंकी अपेक्षा सन्निकर्षके निरन्तर स्थान प्राप्त होते हैं उसी प्रकार अन्तिम उद्वेलनाकाण्डकमें निरन्तर स्थान क्यों नहीं प्राप्त होते हैं ? समाधान- नहीं, क्यों कि किसी भी जीवके अन्तिम जघन्य उद्वेलनाकाण्डकसे एक समय कम आदि क्रमसे न्यून अन्य अन्तिम उद्वेलना काण्डक नहीं उपलब्ध होता है । शंका-उद्वेलना काण्डककी फालियां सब जीवीं में समान क्यों नहीं होती है ? समाधान- नहीं, क्योंकि यदि उनको समान माना जाता है तो ध्रुवस्थितिके नीचे सान्तर स्थानों की उत्पत्तिका प्रसंग प्राप्त होता है । परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि ऐसा मानने पर अन्तिम arsaat अन्तिम फालिको छोड़ कर अन्य सब स्थानों में निरन्तर क्रमसे सन्निकर्षका कथन करने - वाले इस सूत्र के साथ विरोध आता है। इस प्रकार प्रथम प्ररूपणा समाप्त हुई । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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