Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [विदिविहत्ती ३ मणुसभंगो । णवरि सम्मामि० सम्मत्तभंगो। पुरिस० गवुस० छण्णोकसायभंगो । मणुसअपज्ज० मिच्छ० सम्म० सम्मामि० सोलसक० भयदुगुंछ० जह० ज० एगस०। उक्क० श्रावलि. असंखे भागो। अज० जह० एगस० । उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। सत्तणोक० जह० ज० एगस० । उक० श्रावलि० असंखे०भागो। अज० , जह० अंतो० । उक० पलिदो० असंखे०भागो।। इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वका भंग सम्यक्त्वके समान है। तथा पुरुषवेद और नपुंसक वेदका भंग छह नोकषायोंके समान है। मनुष्य अपयतकों में मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय
और उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है । तथा अजघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है ।
विशेषार्थ—सामान्य मनुष्योंके मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सोलह कषाय और तीन वेदोंकी जघन्य स्थिति कहते समय पर्याप्त मनुष्योंकी मुख्यता है अतः इनके उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा। छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिके जघन्य और उत्कृष्ट कालमें भी यही बात है, अतः इनके कालको ओघके समान कहा क्योंकि ओघमें जो छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिके जघन्य और उत्कृष्ट कालको बतलाया है वह पर्याप्त मनुष्योंके ही सम्भव है। किन्तु सामान्य मनुष्योंके सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंकी प्रधानतासे कहा है, क्योंकि उद्वेलनाकी अपेक्षा लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्यों के भी सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति सम्भव है और इसलिये सामान्य मनुष्योके सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल ओघके समान
आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण बन जाता है। शेष कथन सुगम है । उपर्युक्त सब कथन मनुष्य पर्याप्त जीवोंके भी बन जाता है किन्तु सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिके उत्कृष्ट कालके कथनमें कुछ विशेषता है। बात यह है कि मनुष्यपर्याप्त जीवोंका प्रमाण संख्यात ही है अतः इनके सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल सम्यक्त्वके समान संख्यात समय ही होगा। तथा इनके स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिके जघन्य और उत्कृष्ट कालमें भी कुछ विशेषता है, क्योंकि इनके स्त्रीवेदका स्वोदयसे क्षय नहीं होता अतः जिस प्रकार यहाँ नोकषायोंकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है उसी प्रकार यहां स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल भी अन्तर्मुहूत जानना चाहिये । सामान्य मनुष्योंके समान ही मनुष्यनियोंके सब प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका काल है किन्तु सम्यग्मिथ्यात्व, पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिके उत्कृष्ट कालमें कुछ विशेषता है। बात यह है कि मनुष्यनियोंकी संख्या भी संख्यात है, अतः इनके सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिके उत्कृष्ट कालके समान संख्यात समय ही होगा। तथा पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिका उत्कृष्ट काल छह नोकषायोंकी जघन्य स्थितिके उत्कृष्ट कालके समान होगा, क्योंकि मनुष्यनियोंके इन दोनों वेदोंका स्वोदयसे तय नहीं होता है । मनुष्य अपर्याप्तकोंमें एक जीवकी अपेक्षा मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिका
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