Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिडिदिविहत्यिसरिणयासो ४२५ घेत्तव्वो ण पुव्विल्लत्थो, उवयारमवलंबिय अवहिदत्तादो। एवं णेदव्वं जाव अणाहारए त्ति ।
एवं भावाणुगमो समत्तो । * सरिणयासो।
७०९. उच्चदि त्ति एत्थ पदज्झाहारो कायव्वो, अण्णहा मुत्तद्वावगमाणुववत्तीदो । कः सन्निकर्षः ? सन्निकृष्यन्ते प्रकृतयो यस्मिन् स सन्निकर्षो नामाधिकारः । एदमहियारसंभालणसुत्त।
___ * मिच्छत्तस्स उक्कस्सियाए हिदीए जो विहत्तिओ सो सम्मत्तसम्मामिच्छत्ताणं सिया कम्मसिनो सिया अकम्मसिनो।
७१०. कुदो ? जदि अणादियमिच्छाइटी सादियमिच्छाइट्टी वा उव्वेल्लिदसम्मत्त-सम्मामिच्छत्तसंतकम्मिओ मिच्छत्तस्स उक्कस्सियं हिदि बंधदि तो सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणमकम्मंसिओ होदि । जदि पुण सादियमिच्छाइट्टी अणुव्वेल्लिदसम्मतसम्मामिच्छत्तसंतकम्मो उक्कस्सियं हिदिं बंधदि तो संतकम्मंसिओ ति दहव्यो । संपहि असंतकम्मियम्मि णत्थि सण्णिकासो; भावस्स अभावेण सह संबंधविरोहादो। यह अर्थ यहां पर प्रधान है ऐसा ग्रहण करना चाहिये, पहलेका अर्थ नहीं, क्योंकि वह उपचारका पाश्रय लेकर अवस्थित है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये।
. इस प्रकार भावानुगम समाप्त हुआ। * अब सन्निकषको कहते हैं।
६७०६. 'सण्णियासो' इद सूत्रमें 'उच्चदि' इस क्रियापदका अध्याहार करना चाहिये, अन्यथा सूत्रके अर्थका ज्ञान नहीं होसकता है।
शंका-सन्निकर्ष किसे कहते हैं ?
समाधान-जिसमें प्रकृतियाँ सन्निकृष्ट की जाती हैं अर्थात् जिसमें प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थिति आदिकी अपेक्षा संयोग बतलाया जाता है वह सन्निकर्ष नामका अधिकार है ।
यह सूत्र अधिकारके सम्हालनेके लिये आया है।
* जो मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवाला है वह कदाचित् सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सत्कर्मवाला होता है और कदाचित सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सत्कर्मवाला नहीं होता है।
७१०.शंका-ऐसा क्यों है ?
समाधान-यदि अनादि मिथ्याष्टि जीव या जिसने सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वसत्कर्म की उद्वेलना कर दी है ऐसा सादि मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधता है तो वह सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सत्कर्मवाला नहीं होता है। और जिसने सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्व सत्कर्मकी उद्वेलना नहीं की है ऐसा सादि मिथ्यादृष्टि जीव यदि मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधता है तो वह सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सत्कर्मवाला होता है ऐसा जानना चाहिये। जिस जीवके कर्मकी सत्ता नहीं होती उसके सन्निकर्ष नहीं होता है, क्योंकि भावका अभावके
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